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सागर HD
वो स्वर्गामें किसी देवके मरण होनेपर दूसरे देखके उत्पन्न होनेका अन्तर अधिकसे अधिक सात दिन है । सानकुमार, माहेन्द्र में उत्कृष्ट अन्तरल एक पक्ष है ।बा, ब्रह्मोसर, लोतव, कापिष्ट इन चार स्वर्गामें किसी देवके । मरनेके बाद दूसरे देवके उत्पन्न होनेका अन्तर एक महोना है । शुक्र, महाशुक्र, सतार, सहस्रार इन चार स्वर्गोमें किसी देवके मरनेपर उसके स्थानपर दूसरे देवके उत्पन्न होनेका अन्तर दो महोना है। आनत, प्राणत,
आरण, अच्युत इन चार स्वर्गामें उत्कृष्ट अन्तर चार महीना है। इन सोलह स्वर्गोसे ऊपर न अबेयक, नौ । अनुदिश और पांचों पंचोत्तर इन समस्त कल्पातीत विमानोंमें किसी अहमित्रके मर जानेपर दूसरे अहमिंद्रके । उत्पन्न होनेका अन्तर अधिकसे अधिक छह महोता है। इस प्रकार इनका अन्तर है। सो ही सिद्धान्तसार
वोपकमें लिखा है। सौधर्मेशानयोःप्रोक्तमुत्पत्तो मरणेऽतरम् । उस्कृष्टेन च देवानां दिनानि सप्त नान्यथा।१३।। । सनत्कुमारमाहेन्द्रवासिना कर्मपाकतः । संभवे मरणं ख्यातं पक्षकमन्तरं परम् ॥१४॥
अंतरं ब्रह्मनाकादिचतुःस्वर्गनिवासिनाम् । उत्पत्तौ च्यवने स्याच्य महत्मासैकमेव हि ॥१५॥ । अंतरं मरणोत्पत्ती भवत्येव च नाकिनाम् । मासौ द्वौ परमं शुक्रादिवास्वर्गचतुष्टये ॥१६॥
आनतादिचतुःस्वर्गवासिनां परमंतरम् । चतुर्मासाश्च विज्ञेयं मरणं च संभवे तथा ॥१७॥ नवप्रैवेयकाद्येषु मरणे च समुद्भवे । सर्वेषामहमिंद्राणां मासपटक परान्तरम् ॥१८॥ इस प्रकार सिद्धान्तसार दीपकके सोलहवें अधिकार में लिखा है।
२१८-चर्चा दोसों अठारहवीं प्रश्न-नरक और स्वर्गों में अलग-अलग कौन-कौनसे कालकी प्रवृत्ति रहती है ?
समाधान-सातों हो नरकोंमें सदा शाश्वता समस्त असाताओंकी खानि ऐसा अतिदुःलमा अथवा दुःखमा-दुःखमा नामका छठा काल रहता है। तथा चतुर्णिकाय देवोंके स्थानोंमें, भवनोंमें, आवासों में का विमानों
में सब जगह शाश्वता सदा सुखोंका समुद्र ऐसा सुखमा-सुखमा नामका पहला काल रहता है । सो ही सिद्धांत। सारके बीपकके नौवें अध्याय में लिखा है
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