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________________ पर्यासागर यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि ऐसा कपन किसी शास्त्र में नहीं आया है। यदि ऐसा होता तो शास्त्रोंमें जो पांडुशिला माविका वर्णन लिखा है। सो क्यों होता। इससे सिद्ध होता है कि तीर्थसूर गर्भसे हो होनहार है तीर्थकर होते हैं और इन्द्राविक देव उनके गर्भ कल्याणक आदि पांचों कल्याणक करते हैं । जन्म समयमें जन्मकल्याणक करते हैं तब सब तीनों लोक उनको तीर्थकर कहते हैं । पोछे अनुक्रमसे तप कल्याणक, जान कल्याणक । और निर्वाणकल्याणक होते हैं। पहले तीर्थकरके मोक्ष जानेके बाद गदी खाली न रहनेका कोई नियम नहीं। है। यह निश्चित है कि पांचों कल्याणकोंके बिना तीर्थकर नहीं होते जैसा कि पहले बता चुके हैं । यदि सामान्यकेवलीको हो सोकर कह विया जायेगा तो इसमें दोष आवेगे। यदि यह कहोगे कि उस क्षेत्रके स्वभावसे । ऐसा होता है तो फिर श्वेताम्बरोंके समान इसे अछेड़ा मानकर मानना पड़ेगा। इसलिये ऊपर लिखे अनुसार शास्त्रोक्त श्रद्धान करना ही योग्य है । अन्यथा नहीं। २१४-चर्चा दोसौ चौदहवीं प्रश्न-भगवान तीर्थंकर जन्माभिषेक के समय अपने-अपने इन्द्रों सहित चारों निकार्योंके व आते । हैं। उस समय इन्द्रको सवारीके आगे इन्द्रकी सात प्रकारको सेना चलती है । वह सातों प्रकारको सेना गुणानुवाद करती चलती है । सो वह सेना तीर्थकर भगवानके हो गुण आती है या और भी किसीके गुण आती है। समाधान-सातों हो प्रकारको सेना नृत्य करती हुई चलती है। उनमेंसे प्रथम सेनाके देव, विधाधर, कामदेव और राजाधिराजोंके चरित्र और गुण गाते हुए गमन करते हैं। दूसरो सेनाके देव अर्द्ध, मण्डलोक, । सकल मण्डलीक और महा मण्डलीक राजाओंके चरित्र और गुग गाते हुए तथा नृत्य करते हुए गमन करते हैं। तीसरी सेनाके देव बलभद्र, नारायण और प्रतिमारापोंके बल, वीर्य गुण आदिका वा उनके जीवनचरित्रका वर्णन करते हुए तथा नुस्य करते हुए गमन करते हैं। चौयो सेनाके देव चक्रवर्तीको विभूति तथा बल, वीर्य आदिका गुण वर्णन करते हुए चलते हैं। पांचों सेनाके देव लोकपाल जातिके देवोंका गणानुवाद तथा उसी 'भवसे मोक्ष जानेवाले घरमशरीरी मुनियोंका गुणानुवाद करते हुए चलते हैं। छठी सेनाके देव गणधरव तथा शारिधारी मुनियों के गुण और यशको वर्णम करते हुए चलते हैं। सातवीं सेनाके येव तीर्थकरके छयालोस गुणोंका वा उनके जीवनचरित्रका वर्णन करते हुए पाते नृत्य करते हुए गमन करते हैं । सो हो सिद्धान्तसार । बीपक लिखा है
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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