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________________ चर्चासागर चौंतीस अतिशयोंमेंसे चौबीस ही अतिशय मानने पड़ेंगे। तथा ऐसे तीर्थंकरोंको हीनपुण्य मानना पड़ेगा। सो । ऐसा वेताम्बर मानते हैं। वास्तवमें ऐसे तीर्थकर तो पूर्ण पांचों कल्याणकोंको धारण करनेवाले ही होते हैं। ऐसा नियम है । कम कल्याणकपाले तीर्थकर नहीं होते। शास्त्रों में लिखा है कि मेरु पर्वत एक लाख योजन ऊँचा है। उसके ऊपर चौथा पांडुक नामका वन है। उसकी प्रदक्षिणा रूपसे चूलिकाको ईशान दिशामें चार पांडुक शिला हैं वे अखं चन्द्रमाके समान सुशोभित हैं सो योजन लम्बो पचास योजन चौड़ी और आठ योजन ऊँची हैं। ये शिलाएं स्वयं सिद्ध अनावि अनिधन शामाती विराजमान हैं। एमा रोक शिकायर तीन तीन सिंहासन विराजमान हैं। मध्यके सिंहासनपर श्री तीर्थकर विराजमान होते हैं और अगल-बगल सिंहासनोंपर अभिषेक करनेके लिए इन्द्र खड़े होते हैं । भरत। क्षेत्रको अपेक्षा ईशान कोणकी पांडुक शिलापर भरतक्षेत्रके तीर्थंकरोंका जन्माभिषेक होता है। अग्निकोणको शिला पर पश्चिमविवेहमें उत्पन्न हुए तीर्थकरों का जन्माभिषेक होता है। मेरु पर्वतको नैऋतकोणमें शिलापर रखे हुए मध्यके सिंहासनपर ऐरावत क्षेत्रके तीर्थकरोंका जन्माभिषेक होता है। तथा मेरु पर्वतके वायव्य कोणमें विराजमान पांडुक शिलाके मध्यभागमें रक्खे हुए मध्यके सिंहासन पर पूर्व विदेह क्षेत्रके तीर्थकरोंका जन्माभिषेक होता है । इसी प्रकार दो मेरु पर्वत धातकी वोपमें हैं तथा वो मेरु पुष्कर द्वीपमें हैं । इन चारों मेरु पर्वतों पर भी उन उन द्वीपोंके क्षेत्रोंमें उत्पन्न हुए तीर्थंकरोंका जन्माभिषेक होता है। ऐसा शास्त्रोंमें है । जिसका जन्माभिषेक होता है उसके पांचों कल्याणक अपने आप सिद्ध हो जाते हैं । ऐसा सिद्धान्त है। प्रश्न-पांडक शिलाएँ किस रंगको हैं चारों हो शिलाएं एक रंगको हैं अथवा अलग-अलग रंगकी है। समाधान-चारों पांडुक शिलाए अलग-अलग चार रंगकी है । जिसपर भरतके तीर्थकरोंका अभिषेक होता है वह सुवर्णमय है। जिस पर पश्चिम विदेहके तीर्थंकरोंका अभिषेक होता है वह सफेद चांदोको है। जिस पर ऐरावत क्षेत्रके तीर्थंकरोंका अभिषेक होता है वह ताये हुए सोनेके समान हैं और पूर्व विदेहके तीर्थकरों का अभिषेक जिस पर होता है वह पराग मणिके समान अथवा गुलाबी कमलके समान है । इस प्रकार इन चारों शिलाओंका स्वरूप है। एक-एक शिलापर जो तीन सिंहासन हैं उनमेंसे मध्यके सिंहासन पर तो तीर्थकर विराजमान होते हैं।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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