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________________ । समितिस्ता विना नश्येत्साधूनां कार्यसाधने । स्थूलसूक्ष्मादिहिंसाया व्यर्थ जन्मदीक्षणम्।। इस पंचमकालके वोषसे कितने ही ऐसे मुनि बन गये हैं जो पीछी नहीं रखते और अपने को मुनि मानते । चसागर है परन्तु बास्तबमें वे मुनि नहीं हैं। शास्त्रों में उनको जैनाभास (जैनी तो नहीं है परन्तु जैनियों के समान wwविलाई पड़ते हैं ) बतलाया है । सो हो नीतिसारमै लिखा है कियत्यपि गते काले सतः श्वेताम्बरोऽभवत् । द्राविडो यापनीयश्च केकीसंघश्च मानतः ॥ केकिपिच्छः श्वेतवासो द्राविडो यापनीयकः । नि:पिच्छश्चेति पंचैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ।। स्वस्वमत्यनुसारेण सिद्धांतव्यभिचारिणः । २११-चर्चा दोसौ म्यारहवीं प्रश्न-सिद्धक्षेत्रोंमें सबसे पहले कैलाश बतलाया है और वहाँसे श्री ऋषभदेव मोक्ष पधार है । तथा । महाराज भरतने सुवर्णमय बहत्तर जिनालय बनवाकर उनमें भूत, भविष्यत, वर्तमान तीनों कालोंके चौबीस तीर्थकरोंको बहसर प्रतिमाएं विराजमान की हैं । ऐसा शास्त्रों में लिखा है सो वह कैलाशपर्वत कहाँ है। अन्यमती भी कैलाश पर्वत मानते हैं और वहाँ पर शिवका निवास मानते हैं सो वह भी कहीं जाना नहीं जाता। इसलिए बताना चाहिये कि वह कहा। समाधान-कैलाश पर्वत विजयाद्ध पर्वतकी ओर है। अयोध्या नगरीसे संतालीस हजार बोसो सिरे । सठ लघु योजन दूर है। इसके एक लाख नवासी हमार बावन कोस होते हैं। यह अयोध्यासे उत्तर पूर्वको ओर ईशान दिशाको ओर है। चक्रवर्ती मकर संक्रांतिके दिन अपने महलों पर चढ़कर अपने नेत्रोंसे फैलासकी। ध्वजाको देख लेता है । इस प्रकार केलाशका स्वरूप एक चर्धाको पुस्तकमें लिखा है । उसमें श्लोक वा गाया आदिका कुछ प्रमाण नहीं दिया है। इससमय यहाँ पर किसीका गमन नहीं है। श्रीअजितनाथ तीर्थकरके । समय दूसरे सगर चक्रवर्तीके साठ हजार पुत्रोंने गंगा महानदीका किनारा तोड़कर उसके जलका प्रवाह कैलाश पर्वतके चारों ओर कर दिया है। इससे वहां पहुंचना अशक्य है । तथा अत्यन्त दूर और दुर्गम होने के कारण भी वहां पहुंचना शक्य है। अन्यमती भी यही कहते हैं कि कैलाशके बीच हिमालय पर्वत है। इसलिए वहां किसी का गमन नहीं है। --TOAELaaanामनामाचा
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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