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________________ वर्षासागर [m] अम्मराव राममकर छोड़ देते हैं। ऐसे घरोंका छोड़ना केवल अपने व्रतोंकी रक्षाके लिये है और कुछ नहीं है। यदि वे मुनिराज किसी धनवान, राजा या मित्रके घर तो चले जाँय और दरिद्री, रंक वा शत्रुका घर छोड़ दें तब तो वे रागी, द्वेषी समझे जाँय परन्तु ऐसा वे कभी करते नहीं। इसलिये उनके रागद्वेष कभी सिद्ध नहीं हो सकता। इसके सिवाय वे मुनि स्वादिष्ट भोजनमें वा स्वादिष्ट भोजन देनेवालेमें राम नहीं करते तथा स्वावहीन भोजनमें था उसके देनेवालेमें द्वेष नहीं करते इसलिये भी रागद्वेष रहिल सिद्ध होते हैं। जो पड़गाहन करते हैं उन्हींके घर आहार लेते हैं इसका एक कारण यह भी है कि मुनिराज के भ्रामरी आहार । जिस प्रकार भ्रमर बिना किसीको सताये फूलका रस लेता है उसी प्रकार के मुनिराज बिना किसीको तकलीफ दिये अपना निर्वाह करना चाहते हैं और वह इसी प्रकार पड़गाहन करनेसे दातारकी उत्कट इच्छा हो सकता है अन्यथा नहीं। इस प्रकार भी वे मुनिराज रागद्वेषरहित स्वार्थरहित परम वीतरागी सिद्ध होते हैं । २१० - चर्चा दोसौ दशवीं प्रश्न -- मुनिराज पीछो रखते हैं सो इसमें ऐसा कौनसा गुण है जो वे सामायिक, वन्दना, देवदर्शन करनेमें, चलने-बैठनेमें सब कामोंमें उसको अपने पास रखते हैं। तथा उसके वियोग में प्रायश्चिस लेते हैं, सो यह क्या बात है ? समाधान – पीछो में पांच गुण होने चाहिये जो धूल और पसीनेको दूर करे, जो कोमल हो, जो चिकनी हो और जो छोटी वा हलकी हो। ये पाँच गुण पीडीमें होने चाहिये ऐसी पीछीसे जीवोंको अभयदान दिया जाता है । यह उसमें सबसे उत्तम गुण है। ऐसा भगवान अरहन्तवेवने कहा है। यदि पीछी न हो साधुजनोंकी ईर्यासमितिका नाश हो जाता है। तथा स्थूल, सूक्ष्म आदि अनेक जीवोंका घात होता है । जिससे उन मुनियोंका मुनिपद हो भ्रष्ट हो जाता है। इसीलिये पोछीके वियोग में मुनिराज प्रायश्चित्त लेते हैं । सोही सकलकीतिकृत धर्मप्रश्नोत्तरमें लिखा है-अथ पिच्छिकागुणाः रजः स्वेदाग्रहणद्वयम् । मार्दवं सुकुमालत्वं लघुत्वं सद्गुणा इमे ॥ पंच ज्ञेयास्तथा ज्ञेया निर्भयादिगुणोत्तमाः । मयूरपिच्छजातायाः पिच्छिकाया जिनोदिताः ॥
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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