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________________ ! और दूष ग्रहण करने योग्य है। जिस प्रकार स्त्री भी स्त्री है और माता भी स्त्री है, स्त्री पर्यायको अपेक्षा दोनों का एकसे हैं तथापि स्त्री सेवन करने योग्य है माता सेवन करने योग्य नहीं है तथा भगिनी पुत्री आदि भी सेवन पर्चासागर करने योग्य नहीं है। उसी प्रकार मांस भक्षण करना कभी योग्य नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक पदार्थमे । भिन्नता माने बिना कभी काम नहीं चल सकता । सबको एक मानना सर्वथा मिथ्या है । इसलिये दूष, दही, । घी आदि पदार्थ पवित्र होने के कारण ग्राह्य है और मांस सर्वथा हेय वा त्याग करने योग्य है । प्रश्न-हम तो जीवोंको तुरन्त मारकर उसका मांस खाते हैं । इसको हलाल कहते हैं । हलाल कर खानेमें कोई दोष नहीं है । न कोई पाप है। पाप तो मरे हुए जीवके मांसमें है । क्योंकि उसको हराम कहते है । सो उसका खाना योग्य नहीं है। उत्तर-ऐसा कहनेमें भी महा दोष उत्पन्न होता है। क्योंकि हलाहल और हरामका भेव करना तो । लोगोंको बहकाना है। लोगोंको बहकानेके सिवाय और कुछ नहीं है। क्योंकि प्रत्यक्ष जीवोंको मारना तो योग्य समाना जाय और मरे हुए का स्पर्श करना भी अयोग्य समसा जाय । यह कभी नहीं हो सकता है । ये दोनों ॥ बातें एक ही हैं इनमें कोई अन्तर नहीं है। जो लोग ऐसा कहते हैं वे अपनी इन्द्रियोंको पुष्टि के लिये अथवा अपनी जिला इन्द्रियके स्वादके लिये कहते हैं । भावप्रकाशमें लिखा हैपूतिमासंस्त्रियो वृद्धाः वालार्कस्तरुणं कधि । प्रभाते मैथुनं निद्रा सद्यः प्राणिहराणि षट् ॥ अर्थ-दुर्गन्धमय मांसका भक्षण करना, वृद्ध स्त्रियोंका सेवन करना, कन्याराशिकी धूपको सहना, १ तुरन्तके जमाये हुये वहीको खाना, प्रभातके समय मैथुन करना तथा प्रभातके समय नींद लेना । इन छह बातों के करनेसे शीघ्र हो प्राण नष्ट हो जाते हैं । यहाँ पर प्राण शब्दका अर्थ बल है। इन ऊपर लिखे छहों कामोंमेंसे कोई-सा भी काम करनेसे उसी समय बल नष्ट हो जाता है। सब पराक्रम जाता रहता है । आगे उसी भाव प्रकाशमें लिखा है॥ सद्यो मांसं नवान्नं च वालास्त्री क्षीरभोजनम् । घृतमुष्णोदकस्नानं सधःप्राणकराणि षट् ॥ " [४४i अर्थ-तुरन्त मरे हुए जीवका मांस भक्षण करना, नव यौवन स्त्रीका सेवन करना, तुरन्त बनी हुई। ॥ रसोईका भोजन करना, वूष पीना, घी खाना और गर्म जलसे स्नान करना। इन छ: कार्योंके करनेसे शोघ्र । AaradAATATEMEDEX १६
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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