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________________ we] गरिमामयारियाचारaasRTAIमारवायालय कदाचित् यहाँपर आविशक्तिका उपासक यह कहे कि आदिशक्तिके कटाक्षमें अनेक अवसर हो गये। है इसलिए शक्ति आदि है । खप्पर आदिके द्वारा मद्य, मांसाविकका सेवन करना उसको उपाधि है। इसका है विशेष वर्णन रामायण, वेद-पुराण आश्मेिं लिखा है। रामचन्द्र आदि सब देवताओंने सहस्रनाम आदिके द्वारा इसकी स्तुति वा पूजा की है। जब वे लोग शक्तिके तेजको सह नहीं सकते थे सब नमस्कार कर उसके स्वरूप को सोच करनेके लिए प्रार्थना करते थे इसीलिए हम लोग (शक्तिके उपासक लोग ) उसकी उपासनाके लिए दुर्गा, चण्डो, कात्यायनी, विन्ध्यवासिनी, अम्बिका, काली आदि अनेक स्वरूपोंको धारण करनेवाली शक्तिकी पूजा करते हैं । उसको पूजाके लिए बकरे, भैंसे आविको मार कर बलिदान देते हैं । उसपर मद्य चढ़ाते हैं और उसकी प्रसादी समक्ष कर उस मध, मांसका भक्षण करते हैं। यही सबसे बड़ा धर्म है। तथा ब्राह्मण मात्र सब शक्तिके उपासक हैं ऐसा हो सब शास्त्रों में लिखा है। इस संसारमें शिव तथा विष्णुके उपासक कोई नहीं ! है। लिखा भी है-'ब्राह्मणाः शाक्तिकाः प्रोक्ता न शैया न च वैष्णवाः' । अर्थात् ब्राह्मण सब शक्तिके उपासक हैं शिव वा विष्णुके उपासक कोई ब्राह्मण नहीं है इसीलिये हम शाक्तिक हैं। इस प्रकार वे लोग कहते हैं । परन्तु उनका यह कहना सब हिंसामय है। पापका बढ़ानेवाला है। ऐसे लोगोंसे जीवोंको दया कभी नहीं पल सकती। क्योंकि वे सब कुछ जानते हुए, देखते हुए भी मद्य, मांसका सेवन करते हैं, और उसको सोमपा कहते हैं सो यह किस प्रकार बन सकता है। उनका यह कहना सब मिथ्या है सोम शब्दका अर्थ अमृत है और पा शब्दका अर्थ पीनेवाला है। जो अमृतको पोवे उसको सोमपा कहते हैं । मद्य, पान करनेवाला कभी सोमपा नहीं हो सकता। उसे तो राक्षस कहना चाहिये । वह तो । उपासना करने योग्य कभी नहीं हो सकता । वह तो दूरसे ही त्याग करने योग्य है । जो लोग ऐसोंको उपासना करते हैं वे भी राक्षस हो हैं । प्रश्न-यदि ऐसा है तो माता, गाय, भैंस, बकरी आदिका बूध, दही, घी, छाछ आदि क्यों खाते। पीते हो? यह भी तो शरीरसे ही उत्पन्न होता है । रस नामके पातुसे उपधातु बनता है उसी प्रकार मांस भो शरीरसे उत्पन्न होता है । लगभग दूध और मांस एक-सा है । फिर दूधके समान मांस खानेमें क्या दोष है ।। उत्तर-पद्यपि बूध और मांस दोनों ही शरीर उत्पन्न होते हैं। तथापि मांस त्याग करने योग्य है ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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