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________________ चर्चासागर ४३७ ] कालीघातमरण वा उतोरणा मरण कहते हैं तथा जिस प्रकार आम बालीपर लगा हुआ क्रम-क्रमसे अपने समय। पर पकता है और पककर गिर जाता है उसी प्रकार आयु पूर्ण होनेपर मरण होना उदय मरण कहलाता है। लिखा भी हैआपक्वमपि चूतस्य सुठिगुडप्रलेपनात् । धर्म संस्थापनादेव सुस्वादु पक्वत्वां व्रजेत् ॥ अर्थात्-कच्चे आमको सोंठ, गड़का लेप करनेसे तथा धूपमें रखनेसे वह पक जाता है और स्वाविष्ट हो जाता है उसी प्रकार का मिलनेपर मरण भी समय पूर्ण हुये बिना ही हो जाता है। श्रीउमास्वामीने भी श्रीतस्वार्थसूत्र में लिखा है औपपादिकचरमोत्तमदेहासंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः॥ अर्थात्---वेव, नारको उत्तम शरीरको धारण करनेवाले चरमशरोरी और असंख्यात वर्षको आयुवाले भोगभूमियों । इनकी आयु तो बीचमें नष्ट नहीं होती अर्थात् इनका तो कदलीघातमरण नहीं होता बाकी जीवों का नियम नहीं है | होता भी है और नहीं भी होता। यहाँपर सब ही घरमशरीरियोंका ग्रहण नहीं है किंतु उत्तम शरीर कहनेसे तीर्थकरका ही ग्रहण करना। चाहिये । अन्य सामान्य केवली, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण, गुरुवत्त, पांडव आदिके उदय, उबीरणा दोनों मरण समझना चाहिये। जिस प्रकार दोपफमें तेल रहते हुये भी वायुके शोकेसे वीपक बुझ आता है उसी प्रकार । उपसर्ग वा शस्त्रादिकसे आयु पूर्ण हो जाती है। यहाँपर कदाचित् कोई तत्त्ववादी यह कहे कि यह आत्मा पुपियी, जल, अग्नि, वायु, आकाश इन पांच तत्त्वोंसे बना है आयु पूर्ण होनेपर इसके सब सत्व अपने-अपने तस्वोंमें मिल जाते हैं। इसलिये जीवोंको । । हिंसा वा क्या कुछ नहीं है । जीबके मरनेका अर्थ तत्त्वका तस्वमें मिल जाना है सो इसमें हिंसा होतो नहीं है। । परन्तु उनका यह कहना भी सर्वथा मिथ्या है । तथा महा पापरूप है ! यदि पंचतत्त्व मिलकर हो शरीरमें जीव १. सर्वार्थसिद्धि राजवातिक आदि ग्रंथों में सब हो च रमशरीरियोंका मरण उदयमरग बतलाया है। उसमें लिखा है कि चरमशरीरियोंका शरीर उत्तम होता ही है इसीलिये उत्तम शरोर यह चरमशरोरियोंका विशेषण है। यदि 'घरमोसमदेहाः' इसको जगह चरमदेहाः ऐसा पाठ कर दें तो भी कोई हानि नहीं है इसके अनुसार राजकुमार पांडव आदि अन्तकृतकेवलियोंको जो मोक्ष हुई है सो आयुके पूर्ण होनेपर ही हुई समझना चाहिये।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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