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________________ m ewatantan १बन जाता है उसके पुण्य, पाप कुछ होता नहीं है फिर स्वर्ग का मरकों में जीका आकार अमेफरूपका किस प्रकार हो जाता है । इन गलियों में जीव अनेक प्रकारके सुख-दुख किस प्रकार भोगते हैं । स्वामी, सेवक, माता, पर्चासागर पिता, पुत्र, पौत्र, भगिनी पुत्र आदिका व्यवहार किस प्रकार हो जाता है। तेरी तथा अन्य मनुष्योंकी उत्पत्ति [८] माता-पितासे ही क्यों होती है पंचतत्वोंसे ही क्यों नहीं होती ? यदि पंचतत्वसे जीव उत्पन्न होता है पंच तस्वसे ही उत्पन्न होना गाने फिर गालासे क्यों इल्पन्न होता है । यदि जीव पंचतस्वसे उत्पन्न हुआ है तो फिर येव-पुराणों में यह जो लिखा है कि जीव मर कर परलोकमें जाता है। वहांपर धर्मराय सबके पुण्य-पापका हिसाब देखते हैं तथा उनके कर्तव्य के अनुसार उनको नारकाविक गति देते हैं सो यह पंचतस्वके मिले बिना उत्पन्न हुआ जीव कौन-सा है। जो इस प्रकार परलोकमें आता है। __ यदि जीव पंचतस्पसे बना है और मर कर पंचतत्त्वमें ही मिल जाता है तो फिर जो कोई मर कर । सर्प का भूत-प्रेत योनिमें जन्म धारण कर लेता है और फिर अपने कुटुम्बसे कहता है कि हम प्रेताविक योनिमें उत्पन्न हुए हैं। हमारा उद्धार करो। गंगा, यमुना, प्रयाग, काशी, गया माविमें पिण भरो, श्राद करो और इस प्रकार हमारी गतिका उद्धार करो । सो लोग भी श्राड, पिंडाविक करते ही हैं। इसी प्रकार स्वर्गके लिये। विष्णु-भक्ति, तीर्थयात्रा, यजन, याजन, यज्ञ, दान, पुण्य, व्रतोपवास आवि करते हैं सो सब व्यर्थ मानना । पड़ेगा। क्योंकि यदि जीव पंच तस्वसे जुवा हो नहीं है फिर ये सब कार्य किसके लिए करना चाहिये। यदि जीव पंचतरवसे जुवा नहीं है तो फिर गाय, ब्राह्मणकी दयाका पालना वा भोजनाविकका दान देकर उनको । । सन्तुष्ट करना आदि सब व्यर्थ हो जायगा । इसी प्रकार परमेश्वर वैकुण्ठसे आकर यहाँ अवतार लेते हैं और दैत्यादि दुष्ट जीवोंका विध्वंस कर भक्तोंको सहायता करते हैं सो सब व्यर्थ हो जायगा। क्योंकि सबके मिलापसे बने हुए शरीरसे भिन्न कोई जीव है ही नहीं फिर परमेश्वर किसके लिये ये सब कार्य करता है। जब इस शरीरमें पांच तत्व मिले ही हैं फिर अपने कुटुम्बकी रक्षा क्यों की जाती है। मरनेसे बचनेका उपाय क्यों किया जाता है। रोगाविकके होनेपर औषधि देकर उसके जीनेका उपाय क्यों किया जाता है। स्नान, ॥ सन्ध्या, तर्पण आवि किसके लिये किया जाता है। इससे सिद्ध होता है कि पंचतस्वसे जीव अलग पदार्थ है। a waranantatwasand
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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