________________
पर्चासागर [२२]
Popmememeste-NCREATPATRASTRapesee muTRAPHSTORaipeetpad
कारण सामग्री इकट्ठी होती है । तदनन्तर उस विचारे हुए कामको प्रारम्भ कर देना जैसे जिस मकानके बनानेका संकल्प किया था उसके लिये नीव भरना, दोवाल खड़ी करना आदि कार्योका प्रारम्भ कर देना आरम्भ है। इसी प्रकार सब कामोंके वृष्टांत समझ लेना चाहिये । ये संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ तीनों ही मनसे किये जाते हैं, तोनों ही बचनसे किये जाते हैं और तीनों ही कायसे किये जाते हैं इस प्रकार ये तीनों । तीनों योगोंसे होते हैं और उनके ये नौ भेद हो जाते हैं । नौ प्रकारके संरंभादिक स्वयं किये जाते हैं, दूसरोंसे । से कराये जाते हैं और उनको अनुमोदना को जाती है इस प्रकार कृत, कारित, अनुमोदनाके भेदसे सत्ताईस भेव ।
हो जाते हैं । ये सत्ताईसों भेद क्रोधसे होते हैं, मानसे होते हैं, मायासे होते हैं और लोभ से होते हैं इस प्रकार चारों कषायोंसे गुणा करनेसे एक सौ आठ भेद हो जाते हैं। इन एक सौ आठ भेरोंसे जीहिंसा आदि पाप लगते हैं सो ही मोक्षशास्त्रमें लिखा है। आयं सरंभसमारंभारंभयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ।
___ इन एक सौ आठ पापोंकी निवृत्तिके लिये मालाको एक सौ आठ मणियोंसे णमोकार मंत्रकी अथवा । पंच परमेष्ठोके वाचक अन्य मंत्रोंको जाप तीनों समय करना चाहिये ।
इनके सिवाय पापोंके एक सौ आठ भेद और प्रकारसे भी हैं । यथा-हिंसाविक सब पाप क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कथायोंसे होते हैं; कृत, कारित, अनुमोदनासे होते हैं; मन, वचन, काय इन तीनों योगोंसे होते हैं, तथा भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत काल इन तीनों काल संबंधी होते हैं। इन सबसे गुणा कर देनेसे भी एक सौ आठ भेद हो जाते हैं ।
भावार्थ--क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायोंसे काययोगके द्वारा स्वयं किये हुए भूतकाल। सम्बन्धी पाप । इन्हीं चारों कषायोंसे काययोगके द्वारा दूसरोंसे कराये हुए भूतकाल संबंधो पाप तथा इन्होंने
कषायोंसे फाययोगके द्वारा अनुमोदना किये हुए भूतकाल संबंधो पाप, इसी प्रकार भूतकाल संबंधी पाप बारह प्रकारके हुए, इसी प्रकार भूतकाल सम्बन्धी पाप बारह प्रकारके वचन योग द्वारा तथा बारह प्रकार मनोयोग " द्वारा होते हैं इस प्रकार छत्तीस प्रकारके भूतकाल सम्बन्धी पाप, छत्तीस प्रकार वर्तमान काल सम्बन्धी पाप!