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________________ Swamarine करते हुओंको भला माननेके भेदोंसे एक सौ आठ प्रकारके हो जाते हैं। १२४३४३=१०८ । ये एक सौ आठ | पाप सदा लगते रहते हैं उनका नाश करनेके लिये एक सौ आठ मणियोंकी माला है । एक-एक मणिपर एकचर्चासागर एक णमोकार मंत्रका जाप कर एक-एक पापका नाश करना चाहिये और इस प्रकार सब पापोंका नाश कर [२१] डालना चाहिये यही इसका अभिप्राय है । सोही लिखा है। पृथ्वीपानीयतेजःपवनसुतस्वः स्थावराः पंचकायाः, नित्यानित्यो निगोदौ युगलशिखिचतुःसइयसंज्ञित्रसाः स्युः। एते प्रोक्ता जिनेदश परिगुणिता वाङ मनःकायभैदे य॒श्चान्यैः कारिताद्यैत्रिभिरपि गुणिताश्चाष्टशून्यैकसंख्या ॥ ___ इस प्रकार मालामें एक सौ आठ मणियोंके होनेका कारण है। इसके सिवाय इसका एक कारण और भी है और वह इस प्रकार है-कोई भी पापरूय कार्य किया जाता है उसमें संरंभ, समारंभ और आरम्भ ऐसे ! तीन भेव पड़ते हैं। किसी भी हिंसा आदि पापकार्य के संकल्प करनेको उसके प्रयत्नके आवेश करनेको संरंभ । कहते हैं । उसो पापकार्यके कारणोंका संग्रह करना, साधनको सब सामग्री इकट्ठी करना समारंभ है और। । उस कार्यको प्रारंभ कर देना आरम्भ है। इनका उदाहरण इस प्रकार है । किसीने एक मकान बनानेका विचार किया, उसमें संकल्प किया कि इस तरहका मकान बनवाऊँगा, उसमें इस प्रकारके घर कमरे आदि बनवाऊँगा । इस प्रकारके संकल्पको संरंभ कहते हैं। संरंभमें किसी कामका बाह्य आरंभ नहीं होता केवल विचार या उस Pos कामको करनेका आवेश होता है । संरंभके बाद उस मकानको बनवाने के लिये कारीगर, इंटें, चूना, पत्थर, । कुबाली, फावड़ा आदि साधनोंका संग्रह करना समारंभ है । समारम्भमें भी कामका प्रारम्भ नहीं होता है, केवल m ama-SIPASEXMareranaMIPE १. इन भेदोंको यों समान लेना चाहिये । क्रोधकुतकायसंरंभ, मानकृतकायसरंम, नायाकृतकायसंरंभ, लोभक्तकायसंरंभ, क्रेध कारितकायसंरंभ, मानकारितकायसरंभ, मायाकारितकायसरंभ, लोभकारितकायसंरंभ, क्रोधानुमतकायसंरंभ, मानानुमतकायसंरंभ, मायानुमतकायसंरंभ, लोभानुमतकायसंरंभ । इस प्रकार बारह प्रकारका काय संरंभ, बारह प्रकारका बचनसंरंभ और बारह प्रकारका मनसंरंभ होता है तथा इस प्रकार छत्तीस प्रकारका संरंभ, छत्तीस प्रकारका समारंभ, छत्तीस प्रकारका I आरंभ होता है । ऐसे १०८ मेद हो जाते हैं ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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