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________________ सागर [२३] RSS और छतीस प्रकार भविष्यत्काल सम्बन्धी पाप होते हैं, इस प्रकार एक सौ आठ भेद हो जाते हैं, सो ही धर्मरसिक शास्त्र में लिखा है । हिंसा तत्र कृता पूर्व करोति च करिष्यति । मनोवचनकायैश्च ते तु त्रिगुणिता नव ॥ पुनः कृतं स्वयं करितानुमोदेर्गुणाहताः । ससविंशशि से भेदकः कषायैगु शिक्षांश्व तान् ॥ अष्टोत्तरशतं ज्ञेयं असत्यादिषु तादृशम् । इन एक सौ आठ पापको दूर करनेके लिये एकसौ आठ मणियोंकी माला कही गई है। एक-एक पाप के आलव या बंधको नाश करनेके लिये एक-एक मंत्र का जाप करना कहा है, इस प्रकार प्रातःकाल, मध्याह्नकाल और सायंकाल तीनों समय तीन सौ चौबीस जाप कर पापोंको दूर करना चाहिये। तीनों समय जाप करने वालोंके लिये तो पाप और धर्मको समानता रहती है। यदि तीन बारसे भी अधिक जप करे या तीन मालासे अधिक जप करे तो उसका फल अधिक होता है । यदि तीनों समय की तीन मालाओंसे कम जाप करे तो पापबंध अधिक रहता है । इसलिये प्रति दिन तीन सौ चौबीस जप करने से पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। ऐसा समझ कर णमोकार मंत्र का जप प्रतिदिन तीनों बार एक-एक माला जप कर अवश्य करना चाहिये । २२ - चर्चा बाईसवीं प्रश्न --जाप करते समय मालाको किस प्रकार जपना चाहिये ? समाधान -- जय करते समय मनको तो श्रीअरहन्त देवके ध्यानमें लगाना चाहिये | अपने बायें हाथको अपनी गोदी में रखना चाहिये। ज्ञानमुद्रा धारण करना चाहिये। अपने बायें हाथके अँगूठेपर माला रखनी चाहिये तदनंतर उस ज्ञानी पुरुषको अंगूठे और अंगूठेकी पासवाली उँगलीसे निर्मल जपकी मालाको लेकर जप करना चाहिये । सो हो धर्मरसिक ग्रंथ में लिखा है । १. "तन्यंगुष्ठयोगेन ज्ञानमुत्रेति भाविता" जनी उंगलीको नवाकर अँगूठेकी जड़से लगा देता, तीनों उँगलियाँ खड़ी रखना शानमुद्रा है । [ २३
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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