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________________ Bara चासागर ४१२ ] m are-Year-e- कदाचित् कोई यह कहे कि जीव तो सब एक हैं परन्तु परमेश्वरकी इच्छानुसार सब जुदे-जुदे हो गये। है सो भी ठीक नहीं है। क्योंकि तुम्हारे कहनेसे हो दो भेद हो जाते हैं। फिर एकता कैसे रह सकती है। कदाचित् कोई यह कहे कि जीव तो सब एक ही हैं क्योंकि सबमें एक परमेश्वरको ही सत्ता है अर्थात् । भगवान सबमें है सो यह कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि ऐसा मानना अनेक अनयोंकी जड़ है। क्योंकि यदि । सब जीवमें ईश्वर हैं तो फिर जो जीवोंको मार कर खाते हैं वे परमेश्वरको ही मार कर खाते हैं ऐसा मानना पड़ेगा और इसमें महापाप स्वीकार करना पड़ेगा। कदाचित् मोई यह कहे कि जीवोंमें परमेश्वरका अंश नहीं है किन्तु सब जीव एक हैं । सो यह कहना। भी ठीक नहीं है। क्योंकि यदि सब जीव एक हैं, तो फिर ब्रह्माने जब सृष्टि रची तब उसको अपनी माया । कैसे बतलाई तथा विष्णुको सर्वगत किस प्रकार बतलाया और सब सृष्टिम परमात्मा कैसे बतलाया? यह सब कहना व्यर्थ हो जायगा। इसलिए कहना चाहिए कि जीवों में सर्वत्र परस्पर भेद है। सब जीव समान नहीं हैं। राजा वा सेवकके समान अपने-अपने कर्मोके उदयसे समस्त जीव इस संसारमें अनेक प्रकारके पुगलोंको ग्रहण करते हुए अनेक रूप धारण करते हैं। फिर भला एकेन्द्रिय और पंद्रिय जीव समान कैसे हो जायेंगे। इससे सिद्ध होता है कि एकेन्द्रिय जीवोका कलेवर तो फल, फूल, पत्ते'आदि वमस्पति रूप है तथा को इंद्रिय, तेइन्विय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीवोंका पारीर मांसरूप है। एकेन्निय जीवोंका कन्द-मूल, पत्र, फल, पुष्प रूप शरीर जलसे उत्पन्न होता है। तथा पंचेंद्रिय मनुष्य वा पशु पक्षी जलचराविक जीव पिताके बीर्य g और माताके रुधिरसे उत्पन्न होते है । इस समयके मुसलमान आदि यवन लोग शूद्र जातिके मुत्रको बूंदमें तो बड़ा दोष मानते हैं परन्तु उसी मूत्रको खूबसे बने हुए मांसको खा जाते हैं। उसमें कोई दोष नहीं मानते । सो । यह उनको बड़ी भारी भूल है। किसने ही उत्तम जातिके लोग वा उसम कुलके लोग वेदको मानते हैं उसमें लिखे हुए वाक्योंकी पुष्टि करते हुए यशफर्म करने, उसमें जीवोंका हाम करने तथा देवताओंके लिये बलिदान देकर जोवोंके मारने और उसकी प्रसादी समझकर उन जीवोंके मांसभक्षण करनेका विधान करते हैं। तथा इस प्रकारका मांस भक्षण करते हैं। यदि कोई उनके इस कामको निया करता है तो वेदोंके वाक्य बतला देते हैं। यदि कोई वेवोंको - --
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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