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________________ पर्चासागर किलेखोंने भाण करनेका त्याग तलाया है। तथा एकेन्द्रिय जीवोंमें भी जो योग्य हैं वे ही ग्रहण करने योग्य की हैं अनन्त जीवोंका समुदायरूप साधारण जीवोंका वहां भी त्याग बतलाया है। तू जो समस्त जीवोंको एक-सा बतलाता है सो इसमें तो बड़ा भारी दोष आता है। साक्षात् पंचेंद्रिय { ४११ 1 जोबको मार कर उसका मांस खाना अत्यन्त हिंसाका, निर्दयीपनेका, क्रोध, मान, माया, लोभका तथा महा असृद्धिका कारण है । यह साक्षात् चांडाल कर्म है इसलिए उसमें महादोष उत्पन्न होता है। स्थावर जंगमके भेदसे जीयोंके दो भेद हैं। उनमेंसे जंगम वा त्रस जीवोंके शरीर पिंडमें तो मांस। उत्पन्न होता है। परन्तु स्थावर जीवों के शरीर पिडले मांस नहीं निकलता। उसमें तो पते, फल-फूल आदि निकलते हैं । यह प्रत्यक्ष है इसमें प्रमाणको आवश्यकता नहीं है । जिस प्रकार स्त्रियोंमें माता भोग्य नहीं है और अपनी स्त्रीके स्तनपान करना योग्य नहीं है । उसी प्रकार मांस कभी भी किसी भी हालतमें भक्षण करने H योग्य नहीं है । ऐसा निश्चित सिद्धांत है । सो ही लिखा है। स्थावरा जंगमाश्चैव प्राणिनो द्विविधाः स्मृता । जंगमेषु भवेन्मासं फलं च स्थावरेषु च ॥ । जीवत्वेनेह तुल्यास्ते यद्यप्येते भवन्ति वै। स्त्रीत्वे सति यथा माता अभक्ष्या जंगमास्तथा। इस प्रकार समस्त जीवोंको समानता नहीं हैं। यदि सब जोष एक हैं तो फिर जीवोंके शरीरका, उनको गति वा इन्द्रियोंका जुदा-जुदा आकार क्यों दिखाई पड़ता है। इससे सिद्ध होता है कि सब जीव एक नहीं है। कोई बड़ा है, कोई छोटा है, कोई स्त्रो है, कोई पुरुष है, कोई नपुंसक है, कोई पुत्र है, कोई पिता है, कोई पुत्री है, कोई भगिनी है, कोई मामा है, भानजा है इत्यादि व्यवहार सबको एक मान लेनेपर कैसे होगा ? तथा पशु-पक्षी, जलचर आदि जुदे-जुवे जीवोंका जुदा-जवा आकार किस प्रकार होगा। कलेवरोंको तो मांस संज्ञा है परन्तु एकेन्द्रिय जीवों के कलवरोंको मांस संज्ञा नहीं है। क्योंकि उसमें हड्डी, रुधिर आदि कुछ भी नहीं होता है । त्रस जीवोंके कलवरोंमें बदबू होती है। उसमें अनन्तानन्त जोब प्रति समयमें उत्पन्न होते और मरते रहते । हैं और इसीलिये उसमें बदबू होती है। परन्तु गेहूँ, जौ आदि धान्योंमें यह बात नहीं है। न उसमें बदबू है और न उसमें प्रति समयमें अनन्तानन्त जोव उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार गायका दूध पीने योग्य है परंतु गायका मांस खाने योग्य नहीं है । वह त्याग करने योग्य है उसो प्रकार एकेन्द्रिय जीवोसे उत्पन्न हए धान्य भक्ष्य हैं और मांस कभी किसी हालत में भी भक्ष्य नहीं है। बदल होती है। उसमें यह बात नहीं है। गायका मांस RTHAM नी भक्ष्य है
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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