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________________ व सागर [४१३] र नहीं मानता तो उसको चांडाल कहते हैं। उनके यहां लिखा है "वेदवाहास्तु चांडालाः"इस प्रकार वे लोग। - अपना मांस भक्षण पुष्ट करते है। वे लोग यह भी कहते हैं कि पहले बड़े-बड़े लोग मांस भन्नण करते थे। श्रीरामचंद्र की शिकार खेलते थे। क्योंकि सुवर्णके मृगको मारने के लिये वे बोड़े ही थे। बड़े-बड़े राजाओंने जीवोंका वधकर उनका मांस खाया है । हमारे त्रिय वंशका यही धर्म है । इस प्रकार कहकर वे लोग अपने शरीर और इंद्रियोंकी पुष्टि करते हैं परन्तु उनका यह सब कहना व्यर्थ है। यदि उनके वेद और पुराणोंमें होम आदिके द्वारा जीवोंका वध करना लिखा है और उनके मांस भक्षणका विधान बतलाया है तो फिर उन शास्त्रोंको शास्त्र ही नहीं कहना चाहिये । जिन शास्त्रोंके वचनोंसे जीवोंका वध हो ये शास्त्र नहीं किंतु शस्त्र हैं। उनका प्रयोग उपदेश अर्थको कहनेवाली शास् धातुसे नहीं बना है किंतु हिसार्थक शस् धातुसे बना है। । वे लोग उन शास्त्रोंको वेद कहते हैं सो वह वेब नहीं है किंतु बॅत है । जिस प्रकार बेतको मारसे मनुष्य आदि जीवोंका चमड़ा उधर आता है । उसी प्रकार जिसके ऋचारूपी इतके उच्चारणरूपी प्रहारसे पशु आदि जीवों का बघ होता हो, पशुओंका चमड़ा उतारकर होमते हों वह वेद नहीं है किंतु बहुत बड़ा बेत है । इस प्रकार बह वेद शास्त्र नहीं है किंतु शस्त्र है । ऐसे वेदको मानना महा पाप है, महा हिंसाका कारण है। इसके सिवाय एक बात यह भी है कि जीवोंको हिंसा करना तथा मांस भक्षण करना इस लोकमे ।। महापाप माना जाता है। यह बात सब शास्त्रों में लिखो है । हिंसा और मांस भक्षणका फल महा दुःस्वरूप है, और नरकादि अनेक दुर्गतियोंका कारण है। शास्त्रों में ऐसे लोगोंकी अनेक कथाएँ लिखी हैं। इन सब शास्त्रोंको जानते हुए भी लोलुपी लोग सबका लोप कर फिर भी मांस भक्षणाविककी पुष्टि करते हैं और कहते हैं कि वेबमें लिखा है "यज्ञार्थे पशवः सृष्टाः" अर्थात् इस संसारमें पशुओंको रचना यज्ञके ही लिये हुई है। वे लोग उन यज्ञोंके भी कितने हो भेव बतलाते हैं। जिसमें बकरा होमा जाय वह अजामेष या है। जिसमें गाय होमी। जाय वह गोमेष यज्ञ है। जिसमें घोड़ा होमा जाय वह अश्वमेध यज्ञ है। जिसमें मनुष्य होमे जाय नरमेष यन है । इस प्रकार के लोग यज्ञों के अनेक भेव बतलाते हैं उन यज्ञोंमें अनेक जीवोंको होमते हैं और उनका अलग-अलग फल बतलाते हैं। सो सब महापापका मूल है। क्योंकि इन्होंके शास्त्रों में जोवोंके होम करनेमें, उनका वध करनेमें और मांस भक्षण करनेमें महापाप लिखा है । तथा ऐसे-ऐसे समस्त कार्योके करनेका त्याग !
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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