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________________ चरmarie- म ब्राह्मणा ब्रह्मचर्येण यथा शिल्पेन शिल्पिकः । अन्यथा नाममात्र स्यादिन्द्रगोपस्य कीटवत्॥ सत्यं ब्रह्म तपो ब्रह्म-ब्रह्म चेन्द्रियनिग्रहः । सर्वभूतदया ब्रह्म एतद् ब्राह्मणलक्षणम् ॥ वर्षासागर सत्यं नास्ति तपो नास्ति नास्ति चेन्द्रियनिग्रहः। सर्वभूतदया नास्ति एतच्चांडाललक्षणम् ॥ [३९६1 ऐसा महाभारतमें लिखा है। यदि को अपनी जातिमात्र से ही ब्राह्मणपनेका अभिमान करता है तो वह शूद्रके समान माना जाता है। भारतमें लिखा है--जो जातिसे शूद्र है परंतु जो शीलवतको पालन करनेवाला है, स्त्री मात्रका स्थागी है, ब्रह्मचर्य व्रतसे परिपूर्ण है तो वह गुणवान् ब्राह्मण कहलाता है। यदि कोई जातिसे ब्राह्मण होकर भी क्रिया. होन हो, व्यभिचारी हो, परस्त्रीलंपटी हो तो वह शूबके पुत्रके समान माना जाता है। सो ही भारतमें लिखा हैशूद्रोपि शीलसम्पन्नो गुणवान् ब्राह्मणो भवेत्। ब्राह्मणोपि क्रियाहीनःशूद्रापत्यसमो भवेत् ॥ इससे सिद्ध होता है कि जाति पूज्य नहीं है किंतु गुणपूज्य है। लिखा भी है "गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते। अर्थात् सब जगह गुण हो पूज्य होते हैं । यस चाणिक्यमें भी लिखा है--- गुणेषु यत्नः क्रियतां साटोपैः किं प्रयोजनं । विक्रियन्ते न घंटाभिर्गावः क्षीरविवर्जिताः॥ _ अर्थात् बिना दूधवाली गायके गलेमें चाहे जितने घंटे बांधो तब भी वह नहीं बिकती और दूधवाली गायके गलेमें एक भी घंटा न हो तो भी वह तुरंत बिक जाती है। इसलिये गुण धारण करने में प्रयत्ल करना चाहिये, व्यर्थके आडंबरसे कोई प्रयोजन नहीं है । कवाचित कोई यह कहे कि हमारी जाति और कुल हो पूज्य है चाहे वह गुणवान हो या न हो तो । इसका उत्तर यह है कि कहनेसे तो कोई मानता हो नहीं है इसलिये जो महाभारतमें लिखा है वही थोडासा ! यहाँ दिखाया जाता है। देखो वाल्मीक ऋषि भीलिनोके गर्भसे उत्पन्न हुए हैं तथापि वे तपसे हो ब्राह्मण कहलाये हैं । वशिष्ठऋषि उर्वशी नामको वेश्यासे उत्पन्न हुये हैं सो भो तपसे हो ब्राह्मण हुये हैं। पाराशर ऋषि चाण्डालिनीके गर्भसे जन्मे हैं तो भी वे तपसे ब्राह्मण कहलाये हैं। गार्ग्य नामके मुनि गर्दभीसे उत्पन्न हुये हैं। । वे भी तपश्चरणसे हो ब्राह्मण कहलाये हैं। ऋषि मुनि हिरणोसे उत्पन्न हुये हैं वे भी तपश्चरणसे हो । Rames [३९
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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