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इसलिये धर्मात्मा जैनियोंको अपने कल्याण के लिये जैने शास्त्रोंके अनुसार हो अपना कर्तव्य करना।
पर्यासागर
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२०१-चर्चा दोसौ एकवीं प्रश्न--श्रीऋषभदेव तीर्थङ्कर थे तथा भरतेश्वर चक्रवर्ती थे। यह बात तो प्रसिद्ध हो है परन्तु कोईकोई इनको कुलकर भी कहते हैं। सो यह कथन किस प्रकार है ? ।
समाधान-कुलकर चौवह होते हैं परन्तु जैनशास्त्रोंमें ऋषभदेवको पन्द्रहवाँ कुलकर और भरत चक्रगि सोहन गुलमा नातामा है इसका भी करण यह है कि ये दोनों हो तीसरे कालके अन्तमें हुए हैं। श्रीऋषभदेवने पहले चौदह कुलकरोंके समान बाल्यावस्थामें ही असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प, पशु-1 पालन आदिको रचना लोगोंको बतलाई थी। तथा लोगोंको बहुतसे धनका दान दिया था, प्रजाफा प्राण पोषण किया था। दीक्षाके समय जिनलिंगको रीति प्रगट की थी। तथा केवलज्ञानके समय धर्मका मार्ग दिखलाया था और स्वर्ग मोक्षका मार्ग प्रगट किया था सो ही लिखा है---
वत्ताणटाणे जणधणु दाणे पयपोसिउ तवखत्तधरू ।
तव चरणविहाणे केवलणाणे तवपरमप्पह परमपरू।। इसलिये श्री ऋषभदेवको पन्द्रहवां कुलकर कहते हैं। भरतेश्वरको सबसे पहले चक्रवर्तीकी पदयो प्राप्त हुई थी जिससे उसने छहों खंडोंको सिद्ध किया था
१. मक्खियाँ फूलोंके रसको पोती हैं पेटमें उनका कुछ देर तक पाक होता है शहद बन जाने के बाद उसे वे छत्ते में गलती है।
उगलती हुई चीज में अनेक जीव उत्पन्न होनेको शक्ति उत्पन्न हो जाता है इसलिये उसमें सदा जीव उत्पन्न होते और मरते हैं। दूसरी बात यह है कि शहद निकालने वाले पहले मक्खियोंको उड़ा देते हैं जिससे हजारों मक्खियां घर रहित हो जाता हैं। यद्यपि उम मेंसे बड़ी-बड़ी मविख्याँ उड़ जाती हैं तथापि सैकड़ों छोटो-छोटो मक्खियों और सेकड़ों अंडे उस छते में रह जाते। हैं । शहद निकालने वाले मक्खियोंके उड़ जानेपर उस छतेको निचोड़ लेते हैं। जिससे उन अंडोंका तथा छोटो छोटो मक्खियोंका सब खून मांसका अर्क उस शहदमें आ जाता है उसमें प्रतिसमय अनेक जोव उत्पन्न होते रहते हैं इस प्रकार शहदका स्वरूप ही महा अपवित्र, घृणित और महापापको खानि है।
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हैं । शहद मिक्खियाँ उड़ जातीयों को उड़ा देते हैं बिदा जीव उत्पन्न होने