SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और देशोंमें राज्यको रीति स्थापित की थी इसलिये इसको सोलहवां कुलकर कहते हैं । सो हो आविपुराणके ! | ३ पर्व श्लोक २१३ में लिखा है । यथा-- वृषभस्तीर्थकृच्चैव कुलकृच्चैव संमतः। भरतश्चक्रभृच्चैव कुलधृच्चैव वर्णितः॥ पसागर प्रश्न-कुलकरोंको मनु भी कहते हैं सो कुलकर शब्दको तथा मनु शब्दको निरुक्ति क्या है क्योंकि निरुक्तिके बिना अर्थ स्पष्ट नहीं होता है। उत्तर--जो कुल उत्पन्न करे पुत्र-पौत्राविकको वंश वृद्धिको बढ़ाये उसको कुलकर कहते हैं । व्याकरणके कृवन्त प्रकरणमें लिखा है कुलं करोतीति कुलकरः। उन कुलकरोंसे ही संतान परंपरा अब तक चली आ रही है और आगामी कालमें भी बराबर चलती चलेगी। मनु शब्द 'मनु अवबोधने' धातुसे बना है। अवबोधनका अर्थ दूसरोंको बतलाना है। जितने कुलकर, हुए हैं उन सबने प्रजाके लिये यथायोग्य बातोंका ज्ञान कराया है। उन्हें अनेक बातें समझाई हैं। इसीलिये उन सबको मनु कहते हैं । श्रीऋषभदेवने तथा महाराज भरतने प्रजाके लिये अनेक बातें बतलाई हैं इसलिये ये भो। मनु वा कुलकर कहलाते हैं । सिद्धांतसारदोपकर्म भो नौवें अधिकारमें यही बात लिखी है। नाभेः कुलकरस्यांतिमस्यात्रासीत्सुतः परः । ऋषभस्तीर्थकृत्पूज्यः कुलकृत त्रिजगद्धितः ॥२७॥ हा मा विग्नीतिमार्गोक्तोऽस्य पुत्रो भरतोग्रजः। चक्रीकुलकरो जातो बधबंधादिदण्डभृत् ।।। २०२-चर्चा दोसो दोवीं प्रश्न-मिथ्यात्व आदि चौदह गुणस्थानों में कौन-कौनसे संहनन होते हैं ? समाधान-मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरत, देशविरत, प्रमत्त, अप्रमत्त इन सातों गुणस्थानोंमें छहों संहननवाले जीव रहते हैं । अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसापराय, उपशांत मोह इन चारों गुणस्थानोंमें रहनेवाले तथा उपशमश्रेणी घड़नेवाले साधुओंके पहलेके तीन संहनन होते हैं । अर्थात् पहले के तीन संहननवाले जोव हो । 1 उपशम श्रेणी चढ़ सकते हैं इसी प्रकार आठ, नो, बस तथा क्षीणमोह नामके बारहवे गुणस्थानमें और सयोग न जिन नामके तेरहवें गणस्यान अपकोणो बढ़नेवाले साघुओंके पहला वनवृषभनाराचसंहनन हो होता है । सो हो सिद्धांतसार दीपकमें ग्यारहवों संषिमें लिखा है--- नान्समाचाATAR २०१
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy