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________________ पर्षासागर [ ३७७ ] जह मज्जय तहय मधु जनयति पावं णरस्स अइबहुगं। असुइव्व जिंदणिज्जं वज्जेयव्वं पयत्तेण ।।८०॥ दण असनमज्झे पडिइ जई मत्थियपि णिट्ठिवई। कह मत्थपिंडयाणं णिज्जासं णिग्घिणो पवई ॥१॥ अन्यमती भी शहरके खाने महापाप बतलाते हैं । उनके यहां लिखा हैसप्त ग्रामेषु दग्धेषु यथार्थ जायते मृणाम् । तपाय जायते पुंसां मधुर्विद्वेकभक्षणात् ।।१।। सात गांवोंके जलानेमें जो पाप होता है उतना पाप शहदको बूब खानेसे होता है। जो लोग सदा । शहद खाते रहते हैं वे अवश्य नरकमें जाते हैं इसमें कोई संदेह नहीं है । सो हो वसुनविश्रावकाचारमें लिखा है जो अवलेहद णिच्चं णरयं सो जाइ णस्थि संदेहो। इसके सिवा और भी अनेक शास्त्रोंमें शहक्के सेवन करने का निषेध लिखा है वहाँसे देख लेना चाहिये ।। बहुत कहाँ तक कहा जाय प्राणांत होनेपर भी शहद नहीं खाना चाहिये। प्रश्न--रोगाविकके उपायोंमें शहदका अनुपान बहुत जगह लिखा है। इसलिये बिना शहदके बदले क्या उपाय करना चाहिये । इसके बिना तो रोगीका काम ही नहीं चल सकता ? उत्तर--चिकित्सा शास्त्रमें लिखा है कि यदि औषधिके अनुपानमें मधु लिखा हो और वहाँपर मधु न। मिलता हो तो उसके बदले पुराना गुड़ काममें ले लेना चाहिये । पुराना गुड़ भी शहरके समान गुण करनेवाला है इसलिये गुड़से काम चला लेना चाहिये किन्तु शहद कभी नहीं खाना चाहिये । सो हो लटकन मिश्रके पुत्र भावमिथ विरचित भावप्रकाशमें लिखा है-- मधु यत्र न लभते तत्र जीर्णो गुडो मतः। शाघर संहितामें लिखा है मध्वभावे गुई जीर्ण । भाषाके वैद्यरत्नमें भी लिखा है-- शहत टौर प्राचीनगुड़ गुणकर शहत समीप ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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