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बर्षासागर
केस गह मंसु लोमा चम्म वसा रुहिर मुत्ति पुरीसं वा।
णेवट्टी व सिरा देवाण सरीरसंठाणे ॥ ११ ॥ प्रश्न--यदि देवोंके केश नहीं है तो उनका रूप रंड-मुण्ड-सा मालूम पड़ता होगा।
समाधान-समस्त देव-देवांगनाओंका शरीर तथा तीर्थङ्करादिक शलाका पुरुषोंका शरीर अत्यन्त सुन्दर होता है। जिस प्रकार सोलह वर्षका राजकुमार शोभायमान होता है उसी प्रकार सदा शोभायमान बना रहता है । जहाँ-जहाँ जैसी सुन्दरता धाहिए वहाँपर वैसी ही सुन्दरता पुण्यपरमाणुरूप नाम कर्मके उदयसे बन जाती है ।। का गियोग न गन्ध ग्रन्योंसे जान लेना चाहिये।
२००-चर्चा दोसौर्वी प्रश्न--आश्रमोंमें रहनेवाले त्यागी लोग गृहस्थोंके बालकों को पांचों उवम्बर फल और मद्य, मांस, मधुका त्याग करा देते हैं। परन्तु किसने ही अनाचारी किसी रोगी बंद्योंके कहनेसे औषधिमें शहद खा लेते हैं। । सो क्या ठीक है?
समाधान-स्याग करनेके बाद जो खाते हैं सो महापापी हैं। यदि केवल शहदसे हो प्राण बचते हों है तो भी त्याग करने बाद नहीं खाना चाहिये । अवशाल नामके भीलके समान दृढ़ रहना चाहिये। इसके सिवाय यह शहद ही मद्य और मांसके समान है।षयोंकि मद्य, मांस और शहद तीनों ही एकसे कहे गये। इसलिये जैनीके कुलमें जन्म लेकर इनका ग्रहण कभी नहीं करना चाहिये । जैनशास्त्रोंमें इसके सेवन करनेका महादोष लिखा है। देखो जैसा मय है वैसा ही शहब है। इसके सेवन करनेवाले पुरुषको महापाप लगता है। यह पदार्थ हो अत्यन्त घृणित, अपवित्र और निन्दनीय है । इसलिए इसका स्याग करना ही उचित है इसको सेवन करना कभी उचित नहीं है।
जिस प्रकार भोजनमें कोई मक्ली पड़ जाय तो उसको देखकर लोग कहते हैं कि इसमें माली पड़ गई है अब यह कैसे लाया जा सकता है तो फिर शाहव तो उन्हीं मक्खियोंके मण्डोंका निचोड़ वा अर्क है उसे लोग कैसे खा जाते हैं । बसुनन्दोभावकाचारमें लिखा है
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