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चर्चासागर
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स्वामिकात्तिकेयानुप्रेक्षामें भी लिखा हैवितिचउक्खा जीवा हवंति णियमेण कम्मभूमीसु। चरिमे दीवे अद्धे चरिमसम्मुद्दे सुसब्वेसु॥
१६६-चर्चा एकसी निन्यानवेवीं प्रश्न--पहले एक चर्चामें लिखा है कि देवगतिमें देवोंके केश उत्पन्न नहीं होते सो केशोंमें ऐसा क्या । । दोष है ?
समाधान–शरीरमें केश आवि कितने ही चिह्न ऐसे हैं जो पिताके गुणों से उत्पन्न होते हैं । सोही शारीरिक शास्त्रमें लिखा है। केशः स्मश्रुच लोमानि नखा दंताः शिरास्तथा।धमन्यःस्नायवःशुक्रमेतानि पितृजानि हि ।।
अर्थात् शिरके केश, बाढ़ी, मछ, रोम, नख, वात, शिरा, चौबीस धमनी नाड़ी, नसाजाल और वीर्य सब शरीरमें पिताके वीर्य के गुणसे उत्पन्न होते हैं । बाकोके माँस, रुधिर, मज्जा, मेदा, यकृत प्लोहा, अंतड़ो, । नामि, दय, गुदा आदि मास धिर नाम पातुसे उत्पन्न होते हैं। सो ही शारीरिक शास्त्रमें लिखा हैमांसासकमज्जामेदा च यकृत्प्लीहांत्रनाभयः। हृदयं च गुदा चापि भवन्त्येतानि मातृतः॥
इस प्रकार ये सब गुण माताके रुधिरसे उत्पन्न होते हैं। वेवोंके शरीरमें रस, रुधिर, मांस, मेदा, | अस्थि, मज्जा, शुक्र आदि धातु-उपधातु है नहीं फिर केश कैसे उत्पन्न हो सकते हैं। देवोंका शरीर वैक्रियिक है और केश आदि सब गुण औदारिकके हैं। देवोंका जन्म उपपाद जन्म है यथा-'देवनारकाणामुपपादः' देव नारकियोंका उपपाद जन्म होता है। इस सूत्रसे देवोंके उपपाद जन्म होनेके कारण माता-पिताके गुणोंका।
अभाव सिद्ध होता है। H देवगतिमें चतुर्णिकाय देवोंके तथा देवियोंके केश अर्थात् मस्तक, भृकुटी, नेत्र, नासिका (नाक), दाढ़ी, । मछ आदिफके केश, लिंग, वृषण आविके केश शरीरपर होनेवाले रोम नहीं होते। इसी प्रकार हाथ-पांवकी बोसों उँगुलियोंमें नख नहीं होते, समस्त शरीरपर विभासिनी नामका पहला चमड़ा ( चमड़ेके ऊपर एक पतलासा चमड़ा ) नहीं होता। इसी प्रकार सात प्रकारके चमड़े, नख, रुधिर, हड्डी, मल, मूत्र, दोर्य, रसीना, छाया नेत्रोंको टिमकार आवि समस्त बेवोंके नियमसे नहीं होते हैं । सो हो मूलाचारमें लिखा है