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सागर
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भवणावासादीणं गोडरपाया गणच्चणादिधरा भोम्माद्दारुस्सा सा साहिय पणदिण मुहुत्ताय ॥ — त्रिलोकसार |
बहूरि व्यन्सरनिके आहार किछू अधिक पांच दिन भये अर उच्छ्वास किछू अधिक पाँच मुहूर्त भये
जानना ।
ज्योतिष्कों का आहार कुछ अधिक एक हजार वर्ष पीछे होता है। कुछ अधिकका परिमाण अन्तर्मुहतं अधिक लेना चाहिये । जैसा कि मूलाचारमें लिखा है
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उक्कस्सेणाहारो वाससहस्सा दिएण भवणाणं । जोदिसियाणं पुण भिण्णमुहुतेणेदि सेस उक्कस्सं ॥ १०५ ॥
इसी प्रकार ज्योतिषियोंका भिन्न मुहूर्त अधिक एक पक्षके पोछ उच्छ्वास होता है जैसा-उक्कस्सेच्छासो पक्खेणादिएण होइ भवणाणं ।
मुहुचपुतेण तहा जोइसिणगाण भोमाणं ॥ १०६ ॥ मू० १६५ - चर्चा एकलौ पिचानवेवीं
प्रश्न- दंडक में लिखा है कि तीसरे नरकसे निकल कर कोई जीव तोर्थर भी होते हैं सो यह वर्णन किस प्रकार है ?
समाधान -- बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती ये जीव नरकसे निकलकर कभी नहीं होते । स्वर्गलोकसे जानेवाले जीवोंको ही यह पद प्राप्त होता है। इसका भी कारण यह है कि यह पदवी विना संयम प्राप्त नहीं होती तथा संयम सहित मरण करनेवाला जीव नरकमें जाता नहीं। इसलिये इन पदवियोंको पानेवाला स्वर्गसे ही आता है । सो ही मूलाधार में लिखा है।
रिएहि णिग्गदाणं आणंतरभवेहि णत्थि नियमा दु । वलदेववासुदेवतणं च तह चक्कवट्टीणं ॥२०॥
यह नियम है कि नरक योनिसे निकल कर बलभद्र, वासुदेव और चक्रवर्तीकी पदवी प्राप्त नहीं होती ।
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