________________
सागर ३७२]
सो हो सिद्धांतसार बीपिकामे लिखा है-- निर्गत्य नरकाज्जीवा चक्रेशपलकेशवाः। तच्छत्रवो न जायन्ते चयन्त्यंते यतो दिवात् ॥ चिलोकसारमें भी लिखा है
णिरयचरो णस्थि हरिबलचक्की ॥२०४॥ इस प्रकार लिखा है।
प्रश्न- यहाँपर कदाचित् कोई यह पूछे कि तिरेसठ शलाका पुरुष कहाँ-कहाँसे आकर उत्पन्न हो सकते हैं और कहां-कहांसे आकर उत्पन्न नहीं होते इसका खुलासा किस प्रकार है ?
उत्तर-मनुष्य तथा तियंचगतिसे आकर तीर्थकर, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण और बलभा नहीं । होते । स्वर्ग वा नरक इन दो गतियोंसे ही आकर उत्पन्न होते हैं सो हो मूलाचारमें लिखा है
माणुस तिरियाय तहा सलाग पुरिसा ण होति खलु णियमा।
तेंलि अण्णंतरभवे भयणिज्जं हिब्बुदीगमणं ॥ प्रश्न--जो शलाकापुरुष देवर्गातसे आकर होते हैं वे किन-किन देवोंकी जातियोंसे आकर होते हैं और किन-किन निकायोंसे नहीं होते।
समाधान-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी इन तीन निकायोंके देव तो आकर शलाका पुरुष होते नहीं । तथा सोलह स्वर्ग, नौ अवेयक, नौ अनुविश और पंचोत्तरके देव आकर तीर्थकर आदि शलाका पुरुष हो सकते हैं। ऐसा नियम है । सोही मूलाचारमें लिखा है
आजोदिसित्ति देवा सलागपुरिसा ण होति ते णियमा ।
तेसिं अणंतरभावे भयणिज्ज णिब्बुदीगमणं ॥ त्रिलोकसारमें भी लिखा हैणरतिरियगदीहितो भवणतियादो य णिग्गया जीवा।ण लहंतेते पदविं नेवदिसलागपुरिसाणं॥॥
स्वर्गलोकमें भी कल्पवासी तथा कल्पातीत देवोंमें भी कितने ही जीव आकर इन पदवियोंको पाते हैं।