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________________ सागर ३६३ ] - १६०-चर्चा एकसौ नव्वेवीं प्रश्न – गृहस्थोंके घर स्त्रियाँ रजस्वला होती हैं उनके योग्य अयोग्य आचरणको विधि किस प्रकार है ? समाधान- इसका विधान भाषाके क्रियाकोश आदि शास्त्रोंमें लिखा है । तथापि यहाँपर कुछ विस्तार और विशेषता के साथ लिखते हैं। स्त्रियाँ जो रजस्वला होतो है सो प्रकृतिरूप से तथा विकृतिरूपसे ऐसे दो प्रकारसे होती हैं। जो स्वभावसे हो प्रत्येक महीने योनिमार्गसे रुधिरका स्राव होता है वह प्रकृतिरूप होता है। जो असमय में ही अर्थात् महीनेके भीतर ही रज:स्राव होता है उसको विकृतिरूप कहते हैं वह दूषित नहीं है उसके होनेपर केवल स्नानमात्रसे शुद्धि होती है । उसका सूतक नहीं होता । यदि पचास वर्षके बाद पचास वर्षकी अवस्थासे ऊपर रजःस्राव हो तो उसकी शुद्धि स्नान मात्र ही है। अभिप्राय यह है कि जो रजःस्राव महोनेसे पहले होता है वह विकाररूप है और रोगसे होता है। स्त्रियोंके प्रदर आदि अनेक रोग होते हैं उन्होंसे होता है । इसी प्रकार रजोधर्मका समय पचास पर्यतक है। उससे बाद जो रजोधर्म हो तो वह रजःस्थलाके समान सदोष नहीं है उसकी शुद्धि स्नानमात्र से ही होती है । जो बारहवर्षको अवस्था से लेकर पचास वर्षतक प्रतिमास रजोधर्म होता है वह काल रजोधर्म है। इसके बाद अकालरूप कहा जाता है। इस प्रकार इसके दो भेद हैं। आगे इसका विशेष वर्णन लिखते हैं। जिस विन स्त्रीके रजका अवलोकन हो उस दिनसे लेकर तीन fer तक अशीच है। यदि उस दिन आधी रात तक रजोदर्शन हो तो भी पहला ही दिन समझना चाहिये । आगे इसीका खुलासा लिखते हैं। रात्रिके तीन भाग करना चाहिये । उसमेंसे पहला और दूसरा भाग तो उसी दिनमें समझना चाहिये । और पिछला एक भाग दूसरे बिनको गिनतीमें लेना चाहिये। ऐसो आम्नाय है । 'यदि ऋतुकालके बाद फिर वही स्त्री अठारह बिन पहले ही रजस्वला हो जाय तो वह केवल स्नानमात्र हो शुद्ध हो जाती है। उसको तीन दिनका अशौच नहीं लगता है। यदि कोई स्त्री अत्यंत यौवनवतो हो और वह रजःस्वला होनेके दिनसे सोलह दिन पहले ही फिर रजःस्वला हो जाय तो वह स्नान करने मात्रसे शुद्ध हो जाती है। इसका भी स्पष्ट अभिप्राय यह है कि रजस्वला होनेके बाद फिर वही स्त्री रजस्वला होनेके दिनसे यदि अठारह दिन पहले ही फिर रजस्वला हो जाय तो वह स्नान करने मात्रसे शुद्ध हो जाती है। यदि उसके अठारहवें दिन रजोधर्म हो तो उसको वो बिनका सूतक पालन करना चाहिये यदि उसके उम्मीसवें दिन [ ३६२
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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