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वर्षासागर [ ३६२
पंचहान् सूतकं क्षत्रे दशाहान् ब्राह्मणे विदुः । द्वादशाहान् च वैश्ये हि शूद्रे पकसूतर्क ॥ सतीनां सुतकं हत्यापापं षण्मासकं भवेत् । अन्येषामपहत्यानां यथापापं प्रणाशयेत् ॥८॥ महिष्याः पक्षकं क्षीरं गोक्षीरं च दिनं दश । अष्टमे दिवसेऽजायाः क्षीरं शुद्धं न चान्यथा । इस प्रकार सूतकका सामान्य वर्णन समझना चाहिये । १८६ - चर्चा एकसौ नवासीवीं
प्रश्न--गोत्रीको सूतक किस प्रकार पालना चाहिये ।
समाधादपि गोमो चौरी चौकी का हो तो उसको दस रात तक सूतक लगता है, पाँचवीं पीढ़ी वालेको छः रातका सूतक लगता है। छठीं पोढ़ी वालेको चार दिनका सुतक लगता है चार दिन बाद वह शुद्ध है, सातवीं पीढ़ी वाला तीन दिन बाद शुद्ध होता है। आठवीं पीढ़ी वालेको एक दिन रातका सूतक है, पोछे वह शुद्ध है, नौवीं पीढ़ीवालेको वो पहरका सूतक है। तथा दशयों पीठो वालेको स्नान करने मात्रका सूतक है । इसके बाद सब शुद्ध हैं । इस प्रकार गोत्रका सूतक समझना चाहिये। सो ही मूलाचारको टीकामें लिखा है- ८ चतुर्थे दशरात्रिः स्यात् षट्रात्रिः पु ंसि पंचमे । षष्ठे चतुरहः शुद्धिः सप्तमे चदिनत्रयम् ॥ अष्टमे पुस्योरात्रिः नवमे प्रहरद्वयम् । दशमे स्नानमात्रं स्यादेतद् गोत्रस्य सूतकम् ॥
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इस प्रकार गोत्रके सूतकका विचार है। दूसरी, तीसरी पोढ़ीका सूतक पहिलो पीढ़ीके समान है। पीछे सूतकके दिन घटते जाते हैं। ऐसा समझ लेना चाहिये ।
प्रश्न - मुनिको अपने गुरु आदिके मरनेका सूतक किस प्रकार है ? तथा राजाके घर मुत्यु आविका सूतक किस प्रकार है ?
समाधान-मुनि तो एक कायोत्सर्ग कर लेनेपर एक क्षणमें हो शुद्ध हो जाते हैं। तथा राजाके पाँच दिनकर सूतक लगता है । सो ही प्रायश्चित्त शास्त्रमें लिखा है-
यतिः क्षणेन शुद्धः स्यात्पंचरात्रेण पार्थिवः ।
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