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रजोधर्म हो तो उसको तीन दिन तक सूतक पालन करना चाहिये । तब वह शुद्ध होती है । यदि रजस्वला होनेके
बाद चौथे दिन स्नान कर ले और फिर रजस्वला हो जाय तो फिर वह अठारह दिन तक शुद्ध नहीं होती अर्थात् । बासागर
उसे अठारह दिनतक सूतक पालन करना चाहिये । सो ही त्रिवर्णाचारके तेरहवें परिच्छेदमें लिखा है। ३६४ ]
है रजः पुष्पं ऋतुश्चेति नामान्यस्यैव लोकतः। द्विविधं तत्त नारीणां प्रकृतं विकृतं भवेत् ॥
तत्प्रकृतं यत्तु स्त्रीणां मासे मासे स्वभावतः। अकाले द्रव्यरोगायुद्रेकात्तु विकृतं मतम् ।। । अकाले चेयदि स्त्रीणां तद्रजो नैव दुष्यति । पंचाशद्वर्षादूचं तु अकाल इति भाषितः॥ रजो वा दर्शनास्त्रीणां अशौचं दिवसत्रयम् । कालेज चारात्राच्चेत् पूर्व तत्कस्यचिन्मतम्॥ रात्रेः कुर्यान्त्रिभागं तु दो भागौ पूर्ववासरे। ऋतौ सूते मृते चैव ज्ञेयोऽन्त्यः स परहनि ।।
ऋतुकाले व्यतीते तु यदि नारी रजस्वला । तत्र स्नानेन शुद्धिः स्यादष्टाददिनात्पुरा ॥ ६ दिनाच्चेषोडशादर्वाक नारी या चातियौवना।पुनः रजस्वलापिस्याच्छद्धिः स्नानेन केचन ॥ ।
रजस्वलायाः पुनरेव चेद्रजः प्रागदृश्यतेऽष्टादश वासराच्छुचिः।
अष्टादशाहि यदि चेद् दिनद्वयादेकोनविंशे त्रिदिनात्ततः परम् ॥ ८ ॥ रजस्वला यदि स्नात्वा पुनरेव रजस्वला । अष्टादशदिनादर्वाक् शुचित्वं न निगद्यते ॥६॥
आगे रजस्वला स्त्रोके आचरण आदिके योग्य-अयोग्यको विधि लिखते हैं ।
यदि कोई स्त्री अपने समयपर रजस्वला हुई हो तो उसको तीन दिन तक ब्रह्मचर्य पूर्वक रात्रिमें किसी एकांत स्थानमें जहाँ मनुष्योंका संचार न हो ऐसी जगह डाभके आसनपर सोना चाहिये। उसको खाट, पलंग, ॥ शय्या, वस्त्र, रुईका बिछोना तथा ऊनका बिछौना आदिका स्पर्श न करना चाहिये। तीन दिन तक उसको देव धर्मको बात भी नहीं करनी चाहिये । जिस प्रकार मालती, माधवी वा कुन्द आदिको वेल संकुचित रूपसे रहती । है उसी प्रकार संकुचित होकर प्राण धारण कर रहना चाहिये। तीन दिन तक शीलवत पालना चाहिये दूध, वही, घी, छाछ मावि गोरसका त्याग कर देना चाहिये। एक बार रुखा अन्न खाना चाहिये। उसको नेत्रों में । काजल, अंजन आदि कुछ नहीं डालना चाहिये । उबटन करना, तेल लगाना, पुष्पमाल पहनना, गंध लगाना