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सिगर १८ ]
अह उवकरणेणढे जावदिया अंगुलिया तावदिया।
उववासा तावदिया वंदति घणमंगुलं केई ॥ इस प्रकार प्रायश्चित्त भूलिका नामके ग्रन्यसे यह थोड़ोसी प्रायश्चित्तको विधि लिखी है विशेष कथन और प्रायश्चित्त ग्रन्योंसे समझना चाहिये । ये सब नाथाएँ प्रायश्चित्त चूलिकाको समझना चाहिये।
१८६-चर्चा एकसौ छयासीवीं प्रश्न-यवि अजिकाके वसाधरणमें कोई दोष लगे तो उसके प्रायश्चित्तको विधि क्या है ?
समाषान-जो पहले मुनीश्वरों के प्रायश्चित्तका वर्णन किया है, उसी प्रकार अजिकाओंका प्रायश्चित समझना चाहिये । उसमें विशेष केवल इतना ही है कि आजकाको त्रिकाल योग्यका धारण तथा सूर्य प्रतिमा। योग धारण ये वो प्रकारके योग धारण नहीं करना चाहिये। बाकी सब प्रायश्चित्त मुनियों के समान हैं । सो ही लिखा है
सह रूमणाणं भणियं समणीणं तय होइमलहरणं । वज्जिय तियाल जोग्गं दिणपडिमं छेदभालं च ॥
१८७-चर्चा एकसौ सतासीवी प्रश्न-जिका रजस्वला समयमें क्या करें ?
समाधान- यदि अजिका रजस्वला हो जाय तो उस दिनसे चौथे दिन तक अपने संघसे अलग होकर किसो एकान्त स्थानमें रहना चाहिये। उन दिनों आचाम्लव्रत ( भात, माड़ खाकर ) तथा निविड वा उपवास धारण कर रहना चाहिये । सामायिक आदिका पाठ मुखसे उच्चारण नहीं करना चाहिये। इन सामायिक पाठोंका मनसे चितवन कर सकती है। उसे दिन-दिनमें प्रासुक जलसे अपने अंग और वस्त्र यथायोग्य रोतिसे शुद्ध कर लेना चाहिये, पांचवें दिन प्रासुक जलसे स्नान कर तथा यथायोग्य रोतिसे वस्त्र धोकर अपने गुरुके समीप जाना चाहिये और अपनी शक्तिके अनुसार किसी एक वस्तुके त्याग करनेका नियम कर लेना चाहिये । सो ही लिखा है