SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्चासागर [ ३५९ ] पुफ्फ पस्सदि विर दित दिवसादि चउवट्ठ दिवसोत्ति। आय विलि णिवेयडि खमणे वा तत्थ कायव्वा ।। आवायसयथि मोणे ण चेव तिस्से तदा समुद्दिटुं । वदरेहर्ण पि पच्छा कादव्वं गुरु सविवं हि ॥ इसमें जो अजिकाके लिये स्नान और वस्त्र प्रक्षालन लिखा है सो ये दोनों ही क्रियाएँ गृहस्थों के समान नहीं है किंतु अपने वा दूसरेके कमंडलुके प्रासुफजलसे यथायोग्य शरीरको धोना और रक्त मिले हुए वस्त्रको । शुद्ध करना कहा है। यदि यह इतना भी न करे तो उसका नितराय आहार फैसे हो । तथा सामायिक । आदिक छह आवश्यक कर्म किस प्रकार बन सकें। गणिनोके साथ बैठना, गणिनी वा अन्य अजिकाओंको स्पर्श करना, धर्मका उपदेश देना, पढ़ना, पढ़ाना, जिन दर्शन करना, आचार्याविकके दर्शन करना और शास्त्र अक्षण करना आदि कार्य किस प्रकार बन सकें। यदि वह स्नानादिक न करे तो चार दिन तक वह जो एकान्त स्थानमें मौन धारण कर, गणिनोसे अलग, सामायिक आदिको क्रियाओंके धारणसे रहित रहती है सो उसका यह रहना भी नहीं बन सकेगा । अजिकाके साक्षात् महावत तो है नहीं, न साक्षात् अट्ठाईस मूलगुण हैं इसलिये उसको स्नानाविकका दोष नहीं लगता। इसके सिवाय एक बात यह भी है कि वह जो स्नान और वस्त्र प्रक्षालन करती है उसका वह प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध होती है। अजिका जो वह स्नान करती है सो सुलके । लिये नहीं करती । सो ही प्रायश्चित्त ग्रन्थमें लिखा है अज्जाक चेलधवणे उपवासो आउकाउपादेण । काउस्सग्गो कहिओ पास गणीरेण पात्तादी ॥ यदि आजिका अप्रासुक जलसे वस्त्र धोये तो इसका प्रायश्चित्त एक उपवास है । यदि वह अपने पात्र शरीर तथा वस्त्रोंको प्रासुक जलसे धोवे तो उसका प्रायश्चित्त एक कायोत्सर्ग है। इस प्रकार वह अजिका यथायोग्य रीतिसे अपने शरीर वस्त्रादिकके षोनेका प्रायश्चित.लेती है गहस्थके समान स्नान करनेका तो उसको अधिकार हो नहीं है। क्योंकि जैनशास्त्रों में तीन प्रकारके स्नान लिखे हैं। -SamaARARASHTRAम्यानचन्य
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy