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________________ IABore..." । ३३९1 हमारा संदेह दूर नहीं होता तो इसका उत्तर यह है कि देखो-जिस समय सोसाजीकी दाई आँख फड़की थी । । तब सीताजीने अपशकुन समझकर शालिको बुलाया जा और सम होनहार हिनको शान्तिके लिये तथा अपने है । सुखको इच्छासे उस भंडारीसे कहा था कि हे भंडारके स्वामो! हमारे घरसे पात्रोंके लिये चारो प्रकारके वान, दो। हमारे वेशमें सब जगके जीवोंको रक्षा करो, कराओ। हमारे देश किसीके द्वारा भी जीवघात न होने पावे । इसी प्रकार हमारे देशमें अनेक ऊँचे शिखरोंसे सुशोभित जिनमन्दिर कराओ। तथा भगवानका नित्य अभिषेक होनेके लिये बहुतसी गायें जिनमन्दिरों में वो, जिनपूजा कराशो और जिनमन्दिरों में भगवानको नाटयशालायें बनवाओ । इस प्रकार सोताजीने आक्षा की। सीताजीको यह आज्ञा सुनकर भंडारीने वैसा ही करने देनेका सब प्रबंध कर दिया अर्थात् सीताजीके कहे हुये सन कार्य कर दिये ऐसा स्पष्ट कथन लिखा है । यथाभांडागाराधिपे प्राह सीता स्वस्य सुखेप्सया। देहि दानं च सर्वेभ्यो पात्रकेभ्यश्च मदग्रहात् ।। जीवरक्षां च सर्वत्र कारयेद्विषये मम । मद्देशे कारयेज्जैनप्रासादाः शिखरान्विताः ॥४८॥ । अभिषेकाय विम्बानां जिनानां गोधनं बहु । देहि चैत्यालयेषु त्वं कारयेत्पूजनं परम् ॥४६॥ नाटयशाला जिनेन्द्रस्य कारयेजिनसद्मसु । तच्छ वा तेन तत्सर्वं कृतं परं च तत्क्षणात् ।। इस प्रकार प्रसंगानुसार लिखा है इलोकोंका अर्थ ऊपर लिखा जा चुका है । इसके सिवाय श्रीअकलंकदेवकृत श्रावकप्रायश्चित्त नामका ग्रन्थ है उसमें भी प्रायश्चित्त वर्णनमें यथोचित गोदान लिखा है । जैसे कलशाभिषेकश्चैको गौरेका च प्रदीयते ॥ अर्थात् एक कलशाभिषेक करना चाहिये और एक गाय देनी चाहिये। द्विशतं भुक्तिदानानं तिस्रो गावो भवंति हि ॥ अर्यात् दोसौ आहारदान और तीन गायें देनी चाहिये ।। द्विगावो कलशस्नानम् ॥ वो गाय देना चाहिये और कलशाभिषेक करना चाहिये।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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