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________________ S HEAL a लिखे हैं उनमेंसे समबत्तिदानमे ऐसा लिखा है कि जिनको आत्मा सभान है तथा क्रिया, मंत्र, वत आदि भो । जिनके समान हैं ऐसे निस्तारक वा गृहस्थाचार्योको पृथ्वी, सुवर्ण आदि दान देना चाहिये । जो व्रत क्रिया है चर्चासागर मन्त्र आविसे समान हैं ऐसे भावकोंको धर्मको स्थिरताके लिये पृथ्वी, सोना मावि बान देना चाहिये । यथा३३८ ] समानायात्मनान्यस्मै क्रियामंत्रवतादिभिः। निस्तारकोत्तमायेह भूहेमाद्यतिसर्जनम् ॥३॥ श्री पद्मनन्दि मुनिने अपने पंचविंशतिका काव्यमें दूसरे दान प्रकरणमें लिखा है कि अभयवान औषषिवान, आहारदान, शास्त्रदान ये चार वान हैं सो ये चारों ही दान अलग-अलग महाफल देनेवाले हैं। सो ही लिखा हैज्ञानवान् ज्ञानदानेन निाधो भेषजैर्भवेत् । अन्नदानात्सुखी नित्यं अभयोऽभयदानतः ॥ ___अर्थात् ज्ञानदानमे ज्ञानी होता है । औषध दानसे निरोग रहता है। अन्नदानसे सदा सुखी रहता है। और अभयदानसे सदा निर्भय रहता है । इन चार दानोंके सिवाय अन्य मतियों के द्वारा कल्पना फिये गये ऐसे । गोदान, सुवर्णदान, भूमि, रथ, कन्या आवि पहले कहे हुए जो दस दान हैं वे सब दान पापके कारण हैं। सो हो पंचविंशतिकाने लिखा है चत्वारि यान्यभयभेषजभुक्तिशास्त्रदानानि तानि कथितानि महाफलानि ॥ नान्यानि गोकनकभूमिरथांगनादि, दानादि निश्चितमवद्यकराणि यस्मात् ॥॥॥ इससे आगे उसी पंचविंशनिकामें लिखा है भूमि आदिका दान जिन मन्दिरमें देना चाहिये जिप्से । नवोन मन्दिर बन सके तथा सुवर्ण, गौ प्रादिभी जिनमन्दिरमें देना चाहिये जिससे दीर्घ काल तक वह मन्दिर बना रहे, जिनशासनको प्रवृत्ति बनी रहे और नवा पूजा, अभिषेक आदि धर्म कार्य होते रहें । सो हो लिखा है-- यहीयते जिनगृहाय धरादि किंचित् नत्तत्र संस्कृतिनिमित्तमिह प्ररूटम् । आस्ते ततस्तदतिदीर्घतरं हि कालं जैनं च शासनमतः क्रतमस्ति दातुः॥ यद्यपि इस काव्यमें गौ दानका स्पष्ट उल्लेख नहीं है तथापि आदि शब्दसे कहा है। कदाचित् यहाँपर कोई यह कहे कि यहाँ काध्यमें गौ वानका वर्णन आदि शब्दसे कहा है सो इससे । FAIRSaiRamananesa amanaimaatravasaasREAakase
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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