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________________ कि हाथसे दिया हुआ दान कभी निष्फल नहीं होता। वानका ऐसा ही माहात्म्य है। इसलिये प्रायश्चित्तोंमें जो गोवान लिखा है सो वह भी समयानुसार यथायोग्य पात्रको देना चाहिये। सर्वथा एकांत पक्षको पकड़कर मारहठ नहीं करना चाहिये । जैनमत स्यावाब रूप है। । ३३७ ] इसके सिवाय जैनधर्ममें अनेक शास्त्र हैं सो किसी एक शास्त्रको पकड़ कर हट नहीं करना चाहिये। 'सामान्यशास्त्रतो नूनं विशेषो बलवान् भवेत् ।' अर्थात् सामान्य शास्त्रसे विशेष शास्त्र बलवान होते हैं । यह सब । न्याय और नीति समझ लेती साहिये। गृहस्थोंको यह सब वान महा पापोंको दूर करनेके लिये तथा अपनी जाति धर्मको वृद्धि करनेके लिए और अपने प्रायश्चित्सको शुद्धिके लिये लेना चाहिये । यह सब लोकाचरण है जिन लोकाचरणोंमें सम्यग्दृष्टी तो श्रावकको सम्यग्दर्शन और व्रतोंमें दोष न लगे ऐसे लोकाचरण करने में कोई हानि नहीं है। सो ही यशस्तिलक चम्पूमें लिखा है । और वर्षा समाधानमें भी लिखा है। यथा॥ सर्व एव हि जैनानां प्रमाणं लोकिको विधिः । यत्र सम्यक्त्वहानिर्न यत्र न प्रदूषणम् ।। यह विषय और भी अनेक शास्त्रोंमें लिखा है श्री आदिनाथके पुत्र महाराज भरतेश्वरने एक बार ऐसा विचार किया था कि दान किसको देना चाहिये। उसी समय यह निश्चय किया था कि जो अहिंसा आदि अणुव्रतोंमें धीर हों, जो गृहस्थ धर्म धारण करनेवालोंमें अप्रेसर हों ऐसे लोगोंको हाथी, घोड़ा, रथ, चाकर, वाहन आदि मनोवांछित पदार्थ तथा अन्न, 1 वस्त्र, घर, गौ आदि दान देकर उनको आशा पूर्ण करनी चाहिए। ऐसा श्री आदिपुराणके अस्तोसवे पर्वमें है ६ आठवें श्लोकमें वर्णन किया है। यथा-- ये च व्रतधरा धीरा धौरेया गृहमेधिनाम्। तपणीया हि तेऽस्माभिरीप्सितैः वस्तुवाहनः ॥ यद्यपि इस श्लोकमें गो शब्द नहीं है तथापि धातूनां अनेकार्थत्वात्, अवयवानां अनेकार्थत्वात् । अर्थात धातुओंके अनेक अर्थ होते हैं तथा अवयवोंसे अनेक कार्य बनते हैं। इस प्रसंगको देख लेना चाहिये । प्रकरण वानका है इसलिये ईप्सित वा इष्ट पदार्थोंमें गौ भी आती है। इसके सिवाय इसी अड़तीसवे पर्षमें पात्रदान, दयावान, समवान, अन्वयवान ऐसे दानके चार भेव Fal ४
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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