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________________ चर्नासागर [ ३३३ ] और गांव भादिका वान देना तथा पंचामृतसे भगवान अरहंत देवका नित्य अभिषेक होता रहे इसके लिये जिनमन्दिरमें गौदान करना प्रत्येक गृहस्थका कर्तव्य है । मन्दिरमै गौवान वेनेसे दूम, वही, घी आदि पंचामृतसे भगवान अरहन्तदेवका नित्य अभिषेक होता रहता है जिससे सदाकाल टिकनेवाला महा पुण्य होता है । ऐसा महा मुनियोंने कहा है । इसी प्रकार जो धर्मात्मा श्रावक अपनो जातिमें उत्पन्न हुआ है जो जाति कुलसे शुख है, ऐसे निर्धन धर्मात्माके पुत्रको भो धर्मको स्थिति अच्छी तरह पालन करनेके लिए अपनी कन्या देनी चाहिये। सो ही लिखा है-- चैत्यालयं जिनेन्द्र स्य निर्माप्य प्रतिमा तथा। प्रतिष्ठा कारयेद्धीमान् हेमैः संघं तु तर्पयेत् ॥ पूजाये तस्य सरक्षेत्रं प्रामादिकं प्रदीयते । अभिषेकाय गोदानं कीर्तितं मुनिभिस्तथा ॥२॥ शुद्धभावकपुत्राय धर्मिष्ठाय दरिद्रिणे । कन्यादानं प्रदातव्यं धर्मसंस्थितिहेतवे ॥३॥ यदि घरमें भार्या न हो तो उसका सवाचार अच्छी तरह पालन नहीं हो सकता तथा घरमें भार्याक होनेसे हो पात्रदान हो सकता है और पात्रवान, जिनपूजन आदि धर्मके कार्य आगामी कालमें परम्परा तक सवा होते रहें, इसके लिये गृहस्थोंको स्त्रोको परम आवश्यकता है। विवाहका मुख्य उद्देश्य अपने समान धर्मात्मा पुत्रको उत्पन्न करना है जिससे कि धर्मको संतति बराबर चलती रहे। इसके लिये अपनी जातिके धर्मात्मा श्रावकको कन्यादान देना चाहिये। सो हो लिखा हैविना भायाँ सदाचारो न भवेद् गृहमेधिनाम् । दानपूजादिकं कार्य प्रगे सन्तति सम्भवः॥ यदि किसी अशुभ कर्मके उदयसे कोई धर्मात्मा श्रावक दरिद्री हो जाय और दरिद्र हो जानेके कारण उसका श्रावकाचार नष्ट होता हो तो उसके धर्माचरणको स्थिर करनेके लिये उसे सुवर्ण दान देना बतलाया है। सो हो लिखा है-- श्रावकाचारनिष्ठोपि दरिद्रः कर्मयोगतः । सुवर्णदानमाख्यातं तस्मै माचारहेतवे ॥१॥ यदि कोई धर्मात्मा मनुष्य निराधार हो, उसके रहनेका ठिकाना न हो तथा निर्धन हो और वा धनके ॥ बिना जिसकी निश्चलता न हो और पूजा-दान आदि श्रावक धर्ममें विघ्न आता हो ऐसे घर रहित श्रावकको
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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