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________________ र्चासागर ३२९ ] PARERamai विक्री आवि व्यापारके सम्बन्धसे किसी मनुष्यका घात हो जाय अयथा घरमें अग्नि लगने पर कोई मनुष्य वा । पशु मर जाय, अपना कुआ खोदनेमें कोई मर जाय, अपने तलाबर्मे पड़ कर कोई मर जाय, जो अपना सेवक द्रव्य कमाने गया हो और मार्गमें चोर आदिके द्वारा वह मारा जाय अथवा अपने मकानको वीवाल पड़ जानेसे। कोई मर जाय तो जिस मनुष्यको कारण मानकर वह मरा है अथवा जिसके कुआ, तलाब, दोवाल आरिसे वह मरा है उसको पाँच उपवास करने चाहिये, बावन एकाशन करना चाहिये, गौदान, संघपूजा, दयादान, अभिषेक, ॥ पुष्प, अक्षत आदि पूजा द्रव्यको जिनभंगारमें देना और गमोकारमंत्रका जप यथायोग्य रीतिसे करना चाहिये। तब वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है । सो ही लिखा है। यस्योपरि मृतो जीवो विषादिभक्षणादिना । क्षुधादिनाथ वा भृत्ये गृहदाहे नरः पशुः ॥ कपादिखनने वापि स्वकीयेत्र तडागके । स्वद्रव्योपार्जिते भृत्ये मार्गे चौरेण मारिते॥ ॥ कुडयादिपतने चैव रंडा वह्नौ प्रवेशने । जीवघातो मनुष्येण संसर्गे क्रयविक्रये ॥ प्रोषधाः पंच गोदानमेकभक्ताद्विपंचाशत् । संघपूजादयादानं पुष्पं चैव जपादिकम् ॥ यदि अपने पानी आदिके मिट्टोके बर्तन अपनी जातिके बिना अन्य जातिके मनुष्य से स्पर्श हो जाय । है तो उतार देना चाहिये । यदि तांबे, पोतल, लोहेके बर्तन दूसरी जातियालेसे छू जाय तो राखसे ( भस्मसे ) H मांज कर शुस कर लेना चाहिये। यदि कांसेके वर्तन अन्य जातियालेसे छु जाय तो अग्निसे गर्म कर शुद्ध करना चाहिये । काठके बर्तन कठवा, कठौती, कुंगे आदि हों और चौकामें काम आ जाने पर दूसरोंके द्वारा छूये जाय तो वे शुद्ध नहीं हो सकते । यदि कांसे, तांबे पा लोहेके बर्तन में अपनी जातिके सिवाय अन्य जाति वाला भोजन कर ले तो अग्निसे शुद्ध कर लेना चाहिये। जिस बर्तनमें मद्य, मांस, विष्ठा, मूत्र, निष्ठीवन । (उलटी वा वमन ) खकार, कफ, मषु आवि अपवित्र पदार्थाका संसर्ग हो जाय तो उस पात्रको उत्तम श्रावक त्याग कर देते हैं । फिर काम नहीं लेते । चलनी, वस्त्रसे मढ़ा सूप, मूसल, चक्की आदि रसोईके उपकरण अपनी मासिके बिना अन्य जातिके लोगोंसे स्पर्श हो जानेपर बिना घोये हुए शुद्ध नहीं होते। उनको धोकर मुख कर लेना चाहिये। यदि स्वप्नमें किसी अन्नाविक वस्तुका भक्षण किया जाय तो उस वस्तुका तीन दिन तकके लिये। Daini
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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