________________
सागर १३०]
त्याग कर देना चाहिये । यदि किसीने स्वप्नमें मद्य, मांसका भक्षण किया हो तो दो उपवास करना चाहिये। यदि नीदमें परवश होकर ब्रह्मचर्यका भंग हो जाय तो एक हजार णमोकार मंत्रका जप करना चाहिये और तीन एकाशन करना चाहिये। यदि स्वप्नमें अपनी माता, भगिनी, पुत्री आदिका संसर्ग हो जाय तो दो उपवास और एक हजार मंत्रका जप करना चाहिये।
यदि कोई मियासिस एक रात्रि रहकर भोजन कर ले अथवा एक बार शूबके घर भोजन कर ले तो उसको पांच उपवास और दो हजार णमोकार मंत्रका जप करना चाहिये । यदि शूद्रके घर अपनी रसोई । भी बनाकर खावे तो भी दोष हो है। इस प्रकार यह थोड़ी-सी प्रायश्चित्त की विधि बतलाई है। विशेष जाननेको इच्छा हो तो अन्य अनेक जैनशास्त्रोंसे जान लेना चाहिये । सो ही लिखा है-- स्वतोन्यैः स्पर्शितं भाडं मृन्मयं चेत्परित्यजेत् । ताम्रारलोहभांड चेच्छुध्यते शुद्धभस्मना । वहिना काश्यभांडं चेत्काष्ठभांडं न शुद्धयति।काश्य तानं च लोहं चेदन्यभुक्तेग्निना वरम्॥ यन्नाजने सुरामांसं विण्मूत्रश्लेष्ममाक्षिकः। क्षिप्तं ग्राह्य न तब्रांडं तत्त्याज्यं श्रावकोत्तमैः॥ चालिनीवस्त्रसूपं च मुशलं घट्टियंत्रकम् । स्वतोन्यैः स्पर्शितं शुद्धं जायते क्षालनात्परम् ।। स्वप्ने तु येन यद्भुक्तं तत्याज्यं दिवसत्रयम् । मयं मांसं यदा भुक्तं तदोपवासकद्वयम् ॥ (ब्रह्मचर्यस्य भंगे तु निद्रायां परवश्यतः। सहस्लैकं जपेज्जापमेकभुक्तं त्रयं भवेत् ॥
मात्रा तथा भगिन्या च समक्षे योग आगते। उपवासद्वये स्वप्ने सहस्लैकं जपोत्तमम् ॥ | मिथ्याष्टिगृहे रात्रौ भुक्तं वा शूद्रसद्मनि । तदोपवासाः पंच स्युः जाप्यं तु द्विसहस्रकम् ॥ इत्येवमल्पशः प्रोक्तःप्रायश्चित्तविधिः स्फुटम्।अन्यो विस्तारतो ज्ञेयः शास्त्रेष्वन्येष भूरिषु ॥
इस प्रकार प्रायश्चित्तका विधान त्रिवर्णाचारके नौवें अध्यायमें लिखा है
कदाचित् यहाँपर कोई यह प्रश्न करे कि इस प्रायश्चित्तकी विवि गौदान तथा ब्राह्मणको दान देना। लिखा है सो यह कहना वा करना तो जिनधर्मसे बाह्य है ऐसा तो अन्यमती कहते हैं इसलिये ऐसा श्रद्धान । करना खोटा है । तो इसका समाधान यह है कि जैनशास्त्रोंमें चार वर्ण बतलाये हैं। तीन वर्ण तो अनाविसे
गरिमामाच-TRATESealitware