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________________ ॥ अज्ञानाद्वा प्रमादाद्वा विकलत्रयघातके । प्रोषधा द्वित्रिचत्वारो जपमालाः तथैव च ।। यदि धास, भुस खानेवाले पंचेन्द्रिय पशुका घात हो जाय तो अट्ठाईस उपवास, पात्रदान, गोगन र्चासागर और अपनी शक्तिके अनुसार पुष्प, अक्षत आदि पूजाके द्रव्य जिनालयमें दान देना चाहिये तब उसकी शुद्धि । ३२८ होती है तथा तभी वह पंक्तिके योग्य होता है । सो ही लिखा है-- घातिते तृणभुकजीवे प्रोषधा अष्टाविंशतिः । पात्रदानं च गोदानं पुष्पाक्षतादि स्वशक्तितः॥ यदि जलचर, थलचर या किसी पक्षीका किसीसे घात हो जाय अथवा चूहा, बिल्ली, कुत्ता आदि दाँत1 से हत्या करनेवाले जीवका किसीसे घात हो जाय तो उस पुरुषको बारह उपवास, सोलह एकाशन, सोलह ॥ अभिषेक, गोदान, पात्रदान करना चाहिये तथा अपनी शक्तिके अनुसार गुरु जो बतलार्वे सो करना चाहिये । तब वह शुद्ध और पंक्तियोग्य होता है । सो ही लिखा हैजलस्थलचराणां तु पक्षिणां घातकः पुमान् । गृहे मूषकमार्जारश्वादीनां दन्तदोषिणाम् ।। प्रोषधा द्वादशकान्नाभिषेकाश्चानुषोडश । गोदानं पात्रदानं तु यथाशक्ति गुरोर्मुखात् ॥ यवि किसीसे गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी आदि जीवोंकी हिंसा हो जाय तो उस पातकोको तेईस उपवास, एकसौ एक एकाशन तथा अपनी शक्ति के अनुसार पात्रदान, तीर्थयात्रा आदि करना चाहिये। तब वह शुद्ध और पंक्तिके योग्य होता है सो ही लिखा है-- गोऽश्वमहिषीलागीनां वधकर्ता त्रिविंशतिः। प्रोषधा एकभक्तानां शतं दानं तु शक्तितः॥ यवि किसीसे किसी मनुष्यको हिंसा हो जाय तो उसको तीनसौ उपवास, गोदान, पात्रदान आदि पहले । कही हुई सब विधि और तीर्थयात्रा आदि करनी चाहिये लब वह शुद्ध और पंक्तिके योग्य होता है । सो हो। लिखा है-- । मनुष्यघातिनः प्रोक्ता उपवासाः शतत्रयम् । गोदानं पात्रदानं तु तीर्थयात्रा स्वशक्तितः॥ [ ३२८ यदि कोई पुरुष किसी पुरुषके कारणसे विष खाकर वा और किसी तरह मर जाय अपवा अन्न, जल. * का त्याग कर मर जाय अथवा पतिके मरने पर कोई विधवा स्त्री अग्निमें प्रवेश कर मर जाय अथवा बरोब
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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