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________________ सागर ।२७ ] सूतके जन्ममृत्योश्च प्रोषधाः पंचशक्तितः। एकभुक्ता दशैकाथाः पात्रदानं च चंदनम् ॥ जिस पुरुषने किसी वस्तुका त्याग कर रक्खा है वह यदि बिना जाने खानेमें आ जाय तो एक उपवास, दो एकाशन और अपनी शक्तिके अनुसार पुष्पाक्षताविकसे भगवानको पूजा करनी चाहिये। तब वह ।। त्यागभंगका प्रायश्चित्त होता है । सो ही लिखा है (यहाँ एक श्लोकको छूट है ) इसी प्रकार बिना आने यदि मुखमें हड्डीका टुकड़ा आ जाय तो तीन उपवास, चार एकासन और । अपनी शक्ति के अनुसार केशर, चन्दन, अक्षत आदि पूजाको सामग्री मन्दिरमें देनी चाहिये तब उसको शुद्धि होती है। सो ही लिखा हैआयाते मुखेस्थिखण्डे चोपवासास्त्रयो मताः। एकभुक्ताश्च चत्वारो गंधाक्षताः स्वशक्तितः॥ यदि अपने हाथसे हड्डीका स्पर्श हो जाय अथवा अपने शरीरसे हड्डीका स्पर्श हो जाय तो स्नान कर दोसौ बार णमोकार मंत्रका जप करना चाहिये । यह उसका प्रायश्चित्त है। यथा। स्पर्शितेस्थिकरे स्वांगे स्नात्वा जाप्यशतद्वयम्। अस्थि यथा तथा चर्म केशश्लेष्ममलादिकम्।। जिस प्रकार हड्डोके स्पर्शका प्रायश्चित्त बतलाया है वही प्रायश्चित गोले चमड़ेके स्पर्श करनेका, केश-श्लेष्म ( कफ, खकार नाकका मल आविका हाथसे वा शरीरसे स्पर्श हो जाने पर लेना चाहिये। अपनी स्त्रीके गर्भपातसे उत्पन्न होनेवाले पापके होनेपर बारह उपवास, पचास एकाशन और अपनी । ही शक्तिके अनुसार पुष्प, अक्षतादिक जिनालयमें देना चाहिये तब शुद्धि होती है । सो ही लिखा हैगर्भस्य पातने पापे प्रोषधा द्वादशाः स्मृताः। एकभक्ताश्च पंचाशत्पुष्पाक्षतादिशक्तितः॥ यदि अज्ञानसे वा प्रमावसे वोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय आदि विकलत्रय जीवोंकी हिंसा हो जाय तो दोइन्द्रिय जीवकी हिंसा होनेपर दो उपवास करने चाहिये और णमोकार मंत्रको बा मालाएँ जपनो चाहिये। इन्द्रिय जीवको हिंसा होनेपर तीन उपवास और णमोकारमंत्रको तीन मालाओंका जप करना चाहिये तथा! चौइन्द्रिय जीवको हिंसा हो जानेपर चार उपवास और णमोकार मंत्रको चार मालाओंका जप करना चाहिये।। सब उसको शुद्धि होती है । सो ही लिखा है [ ३२०
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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