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________________ सागर ३२६ ] __ सब प्रायश्चित्तोंमें प्रायश्चित्त लेनेवाले पुरुषको अपने मस्तकका मुण्डन कराना चाहिये, केशर, अगुरु, । चंदन और पुष्पादिक पूजाके द्रव्य अपनी शक्ति के अनुसार जिनालयमें देना चाहिये, यथायोग्य यह ग्रह पूजा करनी चाहिये, सम्यग्दृष्टि जैनी ब्राह्मणोंको दान देना चाहिये, यथायोग्य रीतिसे चार प्रकारके संघको पूजा करनी चाहिये और गृहस्थ श्रावकोंको भोजन देना चाहिये। ये सब बातें यथायोग्य रीतिसे सब जगह समझ लेना चाहिये । यह सब प्रायश्चित्तोंमें समच्चय प्रार्याःचत्त है । सो हो लिखा हैप्रायश्चित्तेष सर्वेष शिरोमुण्डं विधीयते । काश्मीरागुरुपुष्पादि द्रव्यदान स्वशक्तितः॥ प्रहपूजा यथायोग्यं विप्रेभ्यो दानमुत्तमम् । संघपूजा गृहस्थेभ्यो ह्यन्नदानं प्रकीर्तितम् ॥ यदि किसी स्त्री आदिका चाण्डाल आदिसे संसर्ग हो जाय तो उसे पचास उपवास, पांचसौ एकाशन, सुपात्रोंको दान, तीर्थयात्रा, पचास बार पुष्प, चंदन, अक्षत आविसे भगवानकी पूजा, संघपूजा, मंत्रके जप, व्रत और जिनालयमें द्रव्य दान देना चाहिये। इतना प्रायश्चित कर लेनेपर वह शख और पंक्ति योग्य होता है। सो हो लिखा है चांडालादिकसंसर्ग कुर्वन्ति वनितादिकाः। पंचाशत्प्रोषधाश्चैकभक्ताः पंचशतानि च ।। । सुपात्रदानं पंचाशत्पुष्पचन्दनपूजनम् । संघपूजा च जाप्यं च व्रतं दानं जिनालये ॥ यदि स्त्री आदिका माली आदिसे संसर्ग हो जाय तो उसे पांच उपवास, वश एकाशन, अपनी जातिके । बीस पुरुषोंको भोजन देना चाहिये । इतना प्रायश्चित कर लेनेपर वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है । सो हो लिखा हैमालिकादिकसंसगं कुर्वन्ति योषितादयः । प्रोषधा पंच चैकान्नं दश पात्राणि विंशतिः ॥ इसी प्रकार वृद्धि सूतको ( किसी बालकके जन्म होनेसे जो सूतक लगता है उसमें ) अथवा मृत्यु सूतक (किसीके मरनेपर जो सूतक लगता है उसमें) पाँच उपवास, ग्यारह एकाशन, पात्र-दान और केशर, चन्दन आदि द्रव्योंसे भगवानकी पूजन करनी चाहिये । इतना प्रायश्चित्त कर लेनेपर उसका वह सूतक दूर होता । है। तथा वह शुद्ध होकर पंक्तियोग्य होता है । सो हो लिखा है-- ११
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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