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________________ his-TEMPETENTIRE करनी चाहिये । यह उसका प्रायश्चित्त है। इतना कर लेनेपर वह शुद्ध होता है, पंक्तिमें बैठने योग्य होसा है। सो हो लिखा है-- पर्चासागर । म्लेच्छादिनीचजा गेहे भुक्त त्रिंशदुपोषणम् । एकभुक्ते त्रिपंचाशत् पात्रदानं शतद्वयम् ॥ ३२५ । एका गौः पंचकु भैश्चाभिषेकानां शतद्वयम् । पुष्पाक्षतं तीर्थयात्राद्वयं कुर्याद्विशेषतः॥ यदि कोई श्रावक-श्राविका विजाप्तिके घर ( जो अपनी जातिका नहीं है दूसरी जातिका है उसके घर) । भोजन कर ले तो उसको नौ उपवास, नो एकासन, नौ अभिषेक, अपनी जातिके मौ पुरुषोंका आहार दान और । तीनसौ पुष्पोंसे जप करना चाहिये । यह उसको दण्ड चा प्रायश्चित्त है । इतना कर लेनेपर वह शुद्ध और पोक्त । । योग्य होता है । सो हो लिखा है । यथा। विजातीयानां गेहे तु भुक्तं चोपोषणं नव । एकभुक्त्यन्नदानाभिषेकपुष्पशतत्रयम् ।। जिसके घर कोई मनुष्य पर्वतसे गिर कर मर गया हो अथवा साँपके काट लेनेसे मर गया हो अथवा हाथी, घोड़ा आदि किसी सवारीसे गिर कर मर गया हो तो उसके बाद रहनेवालेको नीचे लिखे अनुसार प्रायचित्त लेना चाहिये । उसको पचास तो उपवास करने चाहिये और पचाप्त ही भगवानके अभिषेक करने | चाहिये । तथा पूजा करनी चाहिये । इतना प्रायश्चित्त करनेपर वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है। सो हो। लिखा है-- गिरेः पातो हि दष्टश्च गजादिपतनान्मृतः । उपवासाश्च पंचाशदभिषेकाश्च तैः समाः॥ यदि कोई अग्निमे पड़कर मर गया हो तो उसके पीछे वालेको पचपन उपवास, अपनी जातिक पांचपाँच पुरुषोंको अन्नवान, एक तीर्थयात्रा, बोस भगवानके अभिषेक, गऊ-दान, केशर, चंदन, पुष्प, अक्षत आदिसे । भगवानकी पूजा, अपनी शक्तिके अनुसार गुरु-पूजा और भगवानके भण्डारमें अपनी शक्तिके अनुसार द्रव्यदान । देना चाहिये । इतना प्रायश्चित्त कर लेनेपर वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है । सो हो लिखा है। मृतेऽग्नौ पातके जाते प्रोषधाः पंचपंचाशत् । पंचपंचान्नदानं च जिनाभिषेकविंशतिः॥ । तीर्थयात्रा च गोदानं गंधपुष्पाक्षतादयः । यथाशक्ति गुरुपूजा द्रव्यदानं जिनालये ॥ n wa
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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