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चर्चासागर । ३१६ ]
प्रवन-यहाँपर जिनसंहिताके मार्गको न जाननेवालेके लिए पूजा करनेका निषेष लिखा सो इसका कारण क्या है ? .
समाधानजैनमतके संहिताशास्त्रों में जिनस्नपन पूजा, प्रतिष्ठा आदि अनेक कर्तव्य कोको विधि लिखो है । यदि कोई पुरुष जिनसंहिताको नहीं जानेगा तो वह पूजाके मार्गको भी नहीं जानेगा । इसलिए पहले। जिनसंहिताका अभ्यास कर लेना चाहिये। पूजाके मार्गको, विधिको जान लेना चाहिये तब फिर पूजा करनी चाहिये । जो पुरुष इन संहिताओंको नहीं जानता वह पूजा, प्रतिष्ठा यादि को विधिको भी नहीं जान सकता। इसलिये सबसे पहले जिनसंहिताओंका अभ्यास करना चाहिये, पूजादिकको विषि जाननी चाहिए और फिर पूजा, अभिषेक आदि कार्य करने चाहिये । जो पुरुष संहिता प्रन्थोंको नहीं जानता उनके न जाननेसे पूजा, प्रतिष्ठाको आम्माय वा विधि भी नहीं जान सकता जिससे वह अनेक प्रकारके संशय उठाता है अनेक विपरीत कार्य करता है और फिर अपने मनको कल्पनाओं के अनुसार करता है। इसलिए जो संहिताग्रन्थों में कही हुई विधिको नहीं जानता यह पूजा करनेके अयोग्य है।
प्रश्न-जिनसंहिताका अर्थ क्या है ?
समाधान-संहिता शम्द दो शब्दोंसे बना है-सं और हित । जो कल्याण वा हित करनेवाली है उसको है हिता कहते हैं, जो सं अर्थात् सम्यक् वा अच्छी तरह जीवोंका कल्याण करनेवाली हो उसको संहिता कहते हैं। अथवा जिसके संसर्गसे जीवोंका कल्याण हो उसको संहिता कहते हैं तथा जो जिन अर्थात् भगवान अरहन्तदेवसे ६ सम्बन्ध रखनेवाली अरहन्तदेवको कही हुई हो उसको जिनसंहिता कहते हैं। सो हो पूजासारके पहले अधिकारमें लिखा हैसंगतं हितमेतस्या भव्यानामिति संहिता। जिनसंबंधिनी सेयं नाम्ना स्याज्जिनसंहिता ॥
इस प्रकार इसकी निरुक्ति है। १. शास्त्र और विधि ग्रंथोंकी आज्ञा है कि बालकको सबसे पहले श्रावकाचार पड़ाना चाहिये । उन श्रावकाचारों में भी सबसे पहले
संहिता ग्रंथ है । देवदर्शन करना, पूजा, भवित, अभिषेक आदि करना हो सबसे पहले सिखाने चाहिये फिर मूलगुण उत्तरगुणोंका स्वरूप सिखाना चाहिये। इसके बाद फिर अन्य विद्याएँ सिखानी चाहिए। जो ऐसा नहीं करते उनको सन्तान सदा अधार्मिक उत्पन्न होती है।