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पासागर
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न हो, हाथ, पैर, मुख, मस्तक, नाक, कान आदि शरीरके अवयव जिसके कम न हों । जो मूर्ख न हो, अत्यन्त । बूढ़ा न हो, बालक न हो, साहसिक ( मारने आविकी हिम्मत रखनेवाला) न हो, जो अधिक लम्बा न हो, बौना न हो, कुरूप न हो, शास्त्रोंका अजानकार न हो, न लोभो हो, न अत्यन्त क्रोधी हो, न दुष्ट हो, जो अभक्त वा भक्तिहीन न हो, धनको अत्यन्स इच्छा रखनेवाला न हो, पाखंडो न हो, वदसूरत न हो, जो क्रोधी न हो, अत्यन्त मोहवाला न हो, धोठ न हो, व्रतोंको शिथिलतासे पालन करनेवाला न हो, रोगी न हो अर्थात् ज्वरातिसार संग्रहणी, अजीर्ण, विशूचिका, कृमि, पांडु, रक्त, पित्त, श्वास, कास, शूल, गुल्म आदि अनेक रोगोंमसे जिसको कोई रोग न हो, जो अन्यायी न हो, अविनयो न हो, ज्यारी न हो, अज्ञानी न हो विदूषक न हो, नाटयकर्मका उपासक न हो, नपुसक न हो, महावतो न हो, सो पूजा करने योग्य है तथा ऊपर लिखे हुये दोष जिसमें हो वह पूजा करने योग्य नहीं है । सो हो पूजासारके दूसरे अधिकार में लिखा है। न कुलीनो न दुईष्टिर्नपापीनाप्यपण्डितः। न निकृष्टक्रियावृत्तिर्नातंकपरिदूषितः ॥ ३०॥ नाधिकांगो नहीनांगो नातिदी? न वामनः।न विरूपोन मूढात्मा नातिवृद्धो न वालकः॥ न साहसिकदुर्वेषो नाशास्त्रज्ञोन लोभवान् ।नातिकोधी न दुष्टात्मा नाभक्तो न विरूपकः॥ न क्रोधावी न मोहावी न दुष्टो नाहढवतः । नानर्थी न च पाखंडी न रोगी नाविनीतकः ॥ न यूतव्यसनासतो नाविद्वान् न विदूषकः । न नाव्योपासको पंडः नानयो न महाबती॥
जिनमें ऊपर लिखे दोष हों वे पूजा करनेके अधिकारी नहीं हैं। इनके सिवाय और भी कितने हो दोष हैं वे भी पूजा करनेवालेको छोड़ देने चाहिये । जैसे आलसी, तन्द्रालु, अत्यन्त मानी, मापाचारो, शूद्र हो और जो जिनसंहिताके मार्गको अर्थात् पूजा-पाठ करने आदि की क्रियाओंको न जानता हो वह भो पूजा करनेके योग्य नहीं है । सो हो भगवद् एकसन्धिकृत जिनसंहिताके तीसरे अधिकार में लिखा है । यथा-- न शूद्रः स्यान्न दुई ष्टिर्न पापाचारपंडितः। न निकृष्टक्रियावृत्तिनातकपरिदूषितः ।। ३ ॥ नाधिकागो न होनांगो नातिदीर्घो न वामनः।न विदग्धो न तन्द्रालु तिवद्धो न वालकः॥ नातिलुब्धो न दुष्टारमानातिमानी न मायिकः। नाशुचिर्नविरूपांगो नाजानन् जिनसंहिताम्॥