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________________ १७४-चर्चा एकसौ चौहत्तरवीं पहले योग्य-अयोग्य पूजकका स्वरूप दिखलाते हुए जो यह लिखा है कि अयोग्यको पूजा नहीं करनी पर्चासागर । चाहिये सो यदि किसी देशकालमें किसो अयोग्यके द्वारा पूजा हो जाय तो इसमें क्या दोष है पूजा करनेमें तो गुण [ ३१७ ] ही है क्योंकि यदि ऊपर लिखे अनुसार फिसी पूजा करनेवाले गुणवानका प्रसंग न मिले तो जैसा मिले वेसा कर लेना ठीक है । परन्तु इसका समाधान यह है कि पहले तो भगवानको ऐसो आज्ञा नहीं है। ऐसा करनेसे भगवानको आज्ञाका भंग होता है जिसस महापाप होता है। फिर भी जो कोई अयोग्य मनुष्य पूजा करता है । उसका फल शास्त्रों में ऐसा कहा है "जो अयोग्य मनुष्य मोहवश होकर जिनपूजा करता है अर्थात् तीवभाव। होनेपर भक्तिके वश होकर पूजा करता है तो उस पुरुषका, उस देशका. उस देशके राजाका तथा उस राज सब साम्राज्यका नाश हो जाता है । इस प्रकारकी पूजा करनेवाले और करानेवाले इन दोनोंको पूजाके फलकी प्राप्ति नहीं होती । उनको वह पूजा निष्फल होती है । इसलिये ऊपर काहे लक्षणोंसे सुशोभित होनेवाले पुरुषको ही भगवानको पूजा करनी चाहिये । सो ही पूजासारके प्रथम अधिकारमें लिखा है यदि मोहासथाभूतो पूजयेत् त्रिजगद्गुरुम् । पुरं राष्ट्र नरेशश्च राज्यं सर्व विनश्यति ॥ ३५ ॥ न को फलमाप्नोति नापि कारापिता स्वयम् । तस्मात्सल्लक्षणोपेतो जिनपूजासु शस्यते ॥ ३६ ॥ यहाँपर अयोग्य पुरुषसे पूजा करानेवालेको भी अशुभ फल होता है ऐसा समझ लेना चाहिये । सो ही जिनसंहिताके तीसरे अधिकारमें लिखा हैनिषिछः पुरुषोदेवं यद्यचेत् त्रिजगत्प्रभुम् । राजराष्ट्रविनाशः स्यात्कर्तृकारकयोरपि ॥६॥ तस्मायलेन गृहीयात् पूजकं त्रिजगद्गुरोः। उक्तलक्षणमेवार्यः कदाचिदपि नापरम् ॥७॥ इससे सिद्ध होता है अपोग्य पुरुषसे कभी पूजा नहीं करानो चाहिये । तथा जो कोई कराता है उसको
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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