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________________ बर्षासागर 1 ३१२] । में मिथ्यात्वका दोष किस प्रकार आ सकता है ? अन्य कुवेवाविकके मानने में मिथ्यात्व वा हिंसाका दोष प्रत्यक्ष आता है इसलिये सम्यग्दृष्टो पुरुष उनको कभी नहीं मानते हैं और न कभी मानना हो चाहिये । जो पुरुष । | इस कथनसे विपरीत कथन करते हैं वे सम्भकारी नहीं हैं सामान लिया है। ऐसा अनेक शास्त्रों में लिखा है। १७१-चर्चा एक सौ इकहत्तरवीं प्रश्न-पहले सब कार्योंमें मंत्र शब्द लिखा है सो मंत्र इन दोनों अक्षरोंका अर्थ क्या है और इनसे मिले हुए मंत्र शब्दका अर्थ क्या है। ___समाधान-मन्त्र शब्दमें दो अक्षर है पहला अक्षर में है उसका अर्थ मन अथवा मनसे सम्बन्ध रखनेबालीमनोकामना है और शब्दका अर्थ रक्षा करना है। इन दोनों अक्षरोंके मिलानेसे मंत्र शब्द बनता है। जो 'म' अर्थात् मन दा मनोकामनाकी 'त्र' अर्थात् रक्षा करे उसको मन्त्र कहते हैं । सोही लिखा हैमकारं च मनः प्रोक्तं प्रकारं त्राणमुच्यते । मनसस्त्राणयोगेन मंत्र इत्यभिधीयते। १७२-चर्चा एकसौ बहत्तरवीं प्रश्न-पहले जो जिनपूजाका वर्णन लिखा है सो उस पूजाको करनेवाला कैसा होना चाहिये ? समाधान- जैन शास्त्रों में पूजाके प्रकरणमें पूज्य, पूजक, पूजा, पूजा हेतु और फल ये पांच प्रकरण लिखे हैं । इनका स्वरूप इस प्रकार है । जो क्षुधा, तृषा आदि अठारह दोषोंसे रहित है, केवलनानसे सुशोभित है, जो कृतार्थ है अर्थात् अष्ट कर्मों के नाश करने रूप कार्यको कर चुके हैं, सिद्ध हो चुके हैं, जो सबका भला । करनेवाले हैं, इन्द्रादिक देव भी जिनके चरण कमलोंको पूजा करते हैं, जो आठों प्रातिहायोंसे विभूषित हैं और ॥ छयालीस गुणोंसे सुशोभित हैं ऐसे वीतराग अरहन्त देव पूज्य है। भावार्थ-~अन्य मतके द्वारा माने हुये हरि, हर, चंडी, मुंडी, भैरव, क्षेत्रपाल, दुर्गा, बोजासणी, शीतला, भवानी, गणपति, हनुमान, अऊत, पन्न, भूस, प्रेत, पितर, सतो आवि अनेक प्रकारके मिथ्यादृष्टी कुवेवादिक कभी पूज्य नहीं हो सकते । सम्यग्दृष्टी जोव ऐसे ॥ कुबेवादिकोंको कभी पूजा नहीं कर सकते किन्तु भगवान अरहंत देव हो सदा पूज्य होते हैं सो ही पूजासारमें लिखा है। भारताचा ३१
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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