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________________ बसागर ३०५ ] समय प्रशान्तिनाथके मन्दिर में स्थापन किये हुये क्षेत्रपालने उन वानरवंशी कुमारोंको डरा कर भगा दिया था । तथा उन पूर्णभव, मणिभद्र क्षेत्रपालने जाकर उलाहना दिया था कि ये लोग मंदिरोंमें जाकर विघ्न करते हैं सो यह बात ठीक नहीं है। तब रामचन्द्रने उन क्षेत्रपालोंसे कहा कि "आप लोग अन्याय मार्गपर चलनेवाले रावणकी तो रक्षा करते हो और धर्मात्माकी रक्षा नहीं करते सो तुमको ऐसा करना योग्य नहीं है। ऐसा पद्मपुराण में लिखा है । इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि क्षेत्र रहते ही हैं। यशस्तिलक महाकाव्यकी टीकामें लिखा है भगवान अरहन्तवेध तीनों जगतके नेत्र हैं जो कोई पूजा करनेवाला चतुणिकाय देवोंको भगवान अरहन्तदेयके समान जानकर पूजा करते हैं, दोनों को समान जानते हैं वे नरकगतिमें जाकर उत्पन्न होते हैं । परमागम वा जैन शास्त्रों में व्यन्तरादिक देवोंको जिनशासनको रक्षाके लिए कल्पित किया है। इसलिए सम्यग्दृष्टी जीवोंको इन शासन देवताओंके लिये यज्ञांश देकर ( पूजाका भाग दान कर ) मानना चाहिये ऐसा सम्यग्दृष्टियोंके लिए लिखा है। यथा- देवजगत्त्रयीनेत्र व्यन्तरायाश्च देवताः । समं पूजाविधानेषु पश्यन् दूरं व्रजेदधः ॥ ताः शासनादि रक्षार्थं कल्पिताः परमागमे । अतो यज्ञांशदानेन माननीयाः सुदृष्टिभिः ॥ तच्छासनैकभक्तानां सुदृशां सुव्रतात्मनाम् । स्वयमेत्र प्रसीदन्ति ताः पुंसां सपुरंदराः ॥ और देखो विजयाद्ध पर्वतपर विद्याधर निवास करते हैं उनमें कितने हो सम्यग्दृष्टी उसी भवसे मोक्ष जानेवाले वा स्वर्ग जानेवाले ऐसे राजा, महाराजा हुए हैं जिन्होंने विद्या सिद्ध करनेके लिए यक्ष-यक्षा आदि व्यन्तरोंकी पूजा वा आराधना की है। यह विषय श्रीगुणभद्राचार्यकृत उत्तरपुराण आदि अनेक ग्रंथोंमें प्रसंग पाकर अनेक स्थानोंपर लिखा है । श्री पालचरित्र में लिखा है कि जिस समय धवल सेठने राजा श्रीपालको समुद्रमें गिरा कर उसको रानोका सतीत्व हरण करना चाहा था उस समय उस सती रानोकी महिमा प्रगट करनेके लिये पद्मावती, चक्रेश्वरी, ज्वालामालिनो आदि यक्षियों तथा पूर्णभद्र, मणिभद्र आदि क्षेत्रपाल ये सब शासनवेवता अपने-अपने वाहन और शस्त्र लेकर आ उपस्थित हुए थे और सबने उस पापी सेठका घोर अपमान किया था और सतोकी महिमा प्रगट की थी । यथा- ३९ X ૨૦૧
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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