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________________ सागर कदाचित् कोई यह कहे कि इनका पूजन किन-किन शास्त्रों में लिखा है तो इसका उत्तर यह है कि न "जिनप्रतिष्ठापाठ, इन्द्रध्वज, सार्द्धद्वितयद्वीपक्षेत्रपूजा, शान्तिचक्र, लघुस्नपन, मध्यस्नपन, बृहत्स्नपन, पंचकल्याण चतुर्विशतिपूजा, जिनयज्ञकल्प, एकसंधिस्वामी कृत जिनसंहिता, पूजासार, त्रिवर्णाचार, हवन पाठ इनको आदि लेकर समस्त जैनपुरागोंमें यथा अवसर इनका पूजन विधान लिखा है । भगवधि नसेनाचार्यने श्रीमदादिपुराणमें गर्भान्वय आदि क्रियाओंका वर्णन करते समय इन्द्रादिकोंका पूजन, आह्वान आदि लिखा है। श्रीऋषभवेबके जन्माभिधेकमें मेरु पर्वतपर अपने यथायोग्य स्थानपर दश दिक्पाल बैठे थे ऐसा लिखा है । यथा दिकपालश्च यथायोग्यं दिग्विदिग्भागसंश्रिताः । ___ तिष्ठन्ति समं निकायैः जिनोत्सवदिक्षया ॥ इसी प्रकार श्रीप्रभा चन्द्रने पावपुराणमें लिखा है कि "इन्द्रने दश दिक्पालोंको स्थापन कर संतुष्ट किया।" बृहवहरिवंशपुराणमें अन्तमंगल करते समय श्रीजिनसेनाचार्यने चौबोस तीर्थंकरोंके महाभक्त चौबीसों । जिनशासन देवताओंको तथा चक्रवरी, पळायती, अम्बिका, ज्वालामालिनी आदि सम्यग्दृष्टी देव-देवियोंको । 1 पुराणके माश्रय बतलाया है कि ये सब शासनदेवता जिनधर्मीके समीप रहते हैं। गिरनार पर्वतपर श्रीनेमि नायके मन्दिरको उपासना करनेवाली सिंहवाहिनी, चक्रको धारण करनेवाली अम्बिकादेवी है जिसके सामने । क्षुद्र देवता टिक नहीं सकते ऐसो वह अम्बिकादेवो कल्याणके लिये जिनशासनको सेवा करती है। इसलिये यहाँपर परचक्रका विघ्न नहीं हो सकता। इसके सिवाय नव ग्रह, असुर, नाग, भूत, पिशाच, राक्षस आदि नोच देव लोगोंके हितकी प्रवृत्तिमें विघ्न ! करते हैं । इसलिये विद्वान लोग शासन देवताओंके गुण स्मरण कर उन क्षुद्र देवताओंको शान्त करते हैं। ऐसा कथन ग्यारहवें, बारहवें श्लोकमें लिखा है सो विचार कर लेना चाहिये। रविषेणाचार्यने सुग्रीव यक्षको अर्ध देनेका कथन पद्मपुराणमे लिखा है तथा सोमसेनकृत लघुपपपुराणमें लिखा है कि "रावण अपने श्रीशान्तिनाथके मन्दिर में बहुरूपिणो विद्या सिद्ध कर रहा था। उसमें विघ्न करने के लिये बानरवंशियोंके कुमार लंकापुरोमें गये और अनेक विघ्न किये परन्तु रावण अपने ध्यानसे नहीं डिगा । उस समय वह रावण अपने ध्यानमें ऐसा । लोम बना रहा कि यदि ऐसा ध्यान मुक्ति के लिये करता तो यह मुनि केवलज्ञानको अवश्य प्राप्त होता । उस [३०
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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