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________________ चासागर ३०३ ] कुशाः कांसाः मा दुई उशीरा पदराः गोधमा व्रीहयो मुजा दश दर्भाः प्रकीर्तिताः ॥ ____ अर्थात्, कुश, कास, जौके पूले, दूब, खसखसके पूले, ककुंदर ( ) गेहूँके पूले, चावलोंके पूले, मूंज ये दस प्रकारके दाभ कहलाते हैं । धर्मरसिकमें भी लिखा है कि वाभके अभाव में कांस ले लेना चाहिये ये दोनों एक ही हैं यथा “कुशाभावे तु कांसाः स्युः कांसा कुशमयाः स्मृताः” १७०-चर्चा एकसौ सत्तरवीं पहले पूजाको विधिमें यक्ष, यक्षिणी, असुरेन्द्र, इन्द्र, दिक्पाल, नवग्रह, क्षेत्रपाल आविका आह्वान, ॥ स्थापन, पूजन आदि लिखा है सो यह तो जैनियोंको करने योग्य नहीं है। ये कार्य तो अन्य मतियोंके हैं। क्योंकि सम्यग्दृष्टि पुरुष तो अरहन्तव्य, वयाप्रणीत धर्म और निम्रन्थ गुरुको छोड़कर और किसोको पूजनाविक नहीं करते। जो करते हैं वे मिथ्यावृष्टि कहलाते हैं ऐसा सब ग्रन्यों में लिखा है। परन्तु तुमने यहाँपर नित्यपूजनमें ही इनका पूजन लिख दिया सो ऐसा श्रद्धान सम्यग्दष्टियोंका नहीं हो सकता । इन यक्ष, यक्षियोंको मन्दिरमें । रखना नहीं चाहिये इनको रखना मिथ्यावृष्टियोंका काम है। जैनियोंमें जो यह रीति चली है सो विपरीत । चलनेवाले लोगोंने चलाई है । सभ्यग्दृष्टि तो प्राणति होनेपर भी इनको पूजनादिक नहीं करता। समाधान—तुमने जो यह प्रश्न किया सो बहुत ठीक किया । यह ठीक है कि श्रीअरहन्तदेवके सिवाय अन्य देवोंको मानना मिथ्यात्व है। परन्तु अन्यमतके स्थापन किये हुये कुदेवादिकोंके पूजन करनेका निषेध किया है। जिन शासन देवोंका विधान जैन शास्त्रों में लिखा है उनका निषेध नहीं किया है यदि ऐसा न होता सो चौबीस तीर्थङ्करोंके गोमुख आवि चौबीस यक्षोंका वर्णन, चक्रेश्वरी आदि चौबोस यक्षियोंका वर्णन तथा क्षेत्रपाल आदि शासन देवताओंका वर्णन जैनशास्त्रोंमें क्यों लिखा जाता तथा इन यक्ष, यक्षियोंकी मूर्ति प्रतिमा के अगल-बगल वा नीचे क्यों बनाते? और इनके पूजनाविकको विधि शास्त्रोंमें क्यों कहते ? यदि इनका I पूजना मिथ्यात्व होता तो जैनशास्त्रोंमें क्यों लिखते ?
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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