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________________ है। परन्तु आप लोगोंका यह कहना और इस प्रकारको पूजाको पूजा मानना ठीक नहीं है। क्योंकि यदि सामभ्यं नहीं पूजा करनेवाला असमर्थ हो और वह बहुत अच्छे शुभ परिमाणोंसे इससे भी घोड़े द्रव्यसे भगवान की पूजा करे तो भी वह महाफलको प्राप्त होता है परन्तु जो समर्थ हैं, बनके पात्र हैं वे अपनी इंत्रियोंकी पुष्टिके लिए अपने घरके बने हुए भोजनमें वा किसी एक भी शाफमें यदि थोड़ा-सा नमक भी कम होता है तो मांग कर उसमें डालकर उसे खूब अच्छा स्वादिष्ट बनाकर खाते हैं। यदि ऐसे लोग दूसरेके घर भोजन करने । । जाँय तो लड्डू, बर्फी आदि मोठे पकवानोंको छोड़कर केवल रूखी रोटी कब खाते हैं। अच्छे-अच्छे पकवान । मांग-मांग कर खाते हैं और अबतक वे अच्छे पदार्थ सामने नहीं आते तबतक उनके परिणाम निरन्तर उसके लोभमें ही लगे रहते हैं। यदि एक ही दिन बसरी जगह दो-चार घरोंमें भोजन बना हो तो जहाँ अच्छेसे अच्छा घी, शक्कर, मिश्रीका पकवान बना हो वहीं जाते हैं। यदि किसी गरीबके गुड़का सोरा बमा हो तो उसके यहाँ कोई नहीं जाता है। ऐसे लोग स्वयं सुगन्धित गंध लगाते हैं । पुष्पोंको सार सुगन्धो लेते हैं। अपने घर दीपक जला कर आनन्द मनाते हैं । पान, सुपारी, इलायची, लोंग मावि सुन्दर फल खाकर प्रसन्न होते हैं। विवाह शादियों में अनेक दीपक जलाते हैं नृत्य-गीत, बाजे-गाजे आविसे उत्सव करते हैं जिनमें बस, स्थावर कायके जीवोंका प्रत्यक्ष घात होता है । ऐसे कार्योंसे वे लोग बहुत प्रसन्न होते हैं उन कार्योंमें तल्लीन हो जाते । हैं और उन कार्योंमें होनेवाले पापोंको देखते हुए वा जानते हुए भी उन कार्योका संग्रह करते हैं। अपनी । इन्द्रियोंके भोगोंसे अपने चित्तको वृत्तिको किञ्चित् भी नहीं रोकते। परन्तु पूजा, पाठ, अभिषेक आदि धर्म कार्यों में सबका निषेष करते हो? सो इसमें सिवाय लोभके और कोई कारण दिखाई नहीं पड़ता। यदि आप लोग लड्डू, बरफी आदि मिष्ठान्न भोजनोंके होते हुए भी साधारण भोजनोंसे काम चला लो, जिस तिस तरह अपना पेट भर लो, खोरमें बुरा कम हो वा न हो तो उसे ऐसे हो खा लो अथवा स्वरा वा शक्करके बदले । उसोके समान सफेद पिसा हुआ नमक डालकर खा लो तो हम भी समझें कि आप लोग ठोक कहते हो और जैसा कहते हो वैसा करते हो। परत ऐसा आप करते नहीं। जिस प्रकार पुजामें और और द्रव्योंसे काम लेते हो उसी प्रकार भूख मेटने के लिये केवल अन्नसे पेट भर लेना चाहिये। सो आप लोग करते नहीं इससे मालूम होता है कि आप लोगोंका कहना मिथ्या है। कोरा छल है। और देखो यदि अपने शरीरमें विषय-भोगोंके भोगनेकी होनता आ जाती है वीर्य क्षीण हो जाता है। ३८ FREEEEEERLENGEमराम्यारिलायसवाल
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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