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कदाचित् यहाँपर कोई यह कहे कि यह तो बड़ा अंधेर है जो सोलह हजार स्त्रियोंसे भोग विलास 4 करते हुये भी बालब्रह्मचारी कहलाये ? तो इसका समाधान यह है कि यह परमतका कथन है । भगवतादि पुराणमें लिखा है कि यदि वेदको साक्षीपूर्वक जो परयोनिमें लिंग प्रवेश करे तो अबतक वोर्यपात नहीं होता तबतक उसको ब्रह्मचारी संज्ञा है धीर्यपातका दोष माना जाता है इसलिए कुच मर्दन, चुम्बन, लिंगप्रवेशादिका दोष नहीं। यथा
परयोनिगतो विंदु कोटि प्रजां विनश्यति । अर्थात् परयोनिमें प्राप्त हुई वीर्यको एक बूंद भी करोड़ों पूजाओंको नष्ट कर देती है । वेद श्रुतिमें भी लिखा है
___यावद्वीर्यस्खलन न भवति तावब्रह्मचारीति श्रुतिः। अर्थात् जबतक वीर्य स्खलन नहीं होता तबतक ब्रह्मचारी संज्ञा है। इसी प्रकार वेद, श्रुति और स्मृति माविके वाक्य दिखलाकर ये लोग ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवोंको तथा ऋषियोको निर्दोष बतलाते हैं सो यह महा-मिथ्यात्व है । ये जैन शास्त्रोंके वचन नहीं हैं।
और सुनो आप लोग यह कहते हो कि जहाँपर पूजा, अभिषेक आवि कार्योम बहुत-सा आरम्भ होता हो तो वहाँपर थोड़ी ही वस्तुसे, वा बिना ही उस व्यके अयवा उसके अभावमें उसकी कल्पनासे अथवा किसी ॥ निर्दोष द्रव्यको वैसा ही नाम रखकर क्या पूजा नहीं हो सकती है ? क्या इन्हीं व्रव्योंसे पूजा हो सकती है ? चरणोंमें गंध नहीं लगाया उसके बदले गंध मिला हुआ जल दूरसे पूजाके किसी पात्र में क्षेपण कर दिया। पुष्प न चढ़ाये चावलोंको गंध वा केशरमें रंग कर पूजाके पात्रमें चढ़ा दिये। अनेक प्रकारके शाक, व्यञ्जन, पक। वान, दाल-भात, बही-दूध आदि मिष्ठान्नके बदले गोलाके टुकड़े पूजाके पात्रमें चढ़ा दिये । दीपकको जगमगाती
ज्योतिके बदले गोलेके छोटे-छोटे टुकड़ोंको गंध वा केशरसे रंग कर चढ़ा दिया। घूरके सुगंधित धूमके बदले चंबनके चूरा को धोकर चढ़ा दिया। अनेक प्रकारके सार सुगंधित तथा मिष्ट और स्वादिष्ट फलोंके बदले बादाम, सुपारी आदि पूजा पात्रमें चढ़ा दिये। पुष्पांजलिके बदले केशरमें रंगे हुए चावल बखेर कर बड़े ऊँचे ' शब्दोंसे जय-जय शब्दों का उच्चारण कर दिया। सो क्या इस प्रकार पूजा नहीं हो सकती। अवश्य हो सकती
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