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________________ 1 सोलह हजार गोपांगनाओंसे ( रानियोंसे ) आशा की तुम सब एक-एक भोजनके यालमें छाक ( सब प्रकारके । # भोजन ) भरकर दुर्वासा ऋषिको भोजन कराने के लिये जाओ। श्रीकृष्णको यह आज्ञा सुनकर सब रानियाँ पासागर अलग-अलग थालोंमें अनेक प्रकारके भोजा बरदार नसालोंको हामारी कर कहने लगी कि "हे महाराज ! २९५ । इस समय यमुना नदी अथाह जलसे भरी हुई बड़े वेगसे बह रही है। उसमें होकर हम सब किस प्रकार पार, हो सकती हैं ? तब श्रीकृष्णने कहा कि तुम सब लोग यमुना नदीके किनारे जाकर कहना कि "हमारे श्रीकृष्ण यदि सचमुच बालब्रह्मचारी हों तो हमको मार्ग दो।" यह सुनकर उन रानियोंने वैसा ही किया और यमुना किनारे जाकर वैसा ही कहा तब यमुना घुटनोंसे भी नीची हो गयी। उसमेंसे वे सब रानियां उतर गई और गोवर्द्धन पर्वतपर जाकर उन दुर्वासा ऋषिके सामने अनेक प्रकार भोजनोंसे भरे हये सब थाल जाकर रख दिये तथा उनसे प्रार्थना की कि श्रीकृष्णने ये सब थाल आपके भोजनके लिये भेजे हैं। कृपाकर आप भोजन कोजिये । रानियोंको यह बात सुनकर वह दुर्वासा ऋषि उन सोलह हजार थालोंका सब भोजन खा गया । तब जाते समय रानियोंने पूछा कि महाराज ! यमुना अथाह भर रही है हमलोग किस प्रकार पार हों। मरानियोंकी यह बात सुनकर ऋषिने पूछा कि तुम सब यहाँपर आई किस प्रकार थीं ? इसके उत्तरमें रानियों-1 P ने पहलेकी सब बात कह सुनाई । उसको सुनकर सोलह हजार भरे हये थालोंका भोजन करनेवाले दुर्वासा । ऋषि कहने लगे कि तुम यमुनाके किनारे जाकर कहना कि हे यमुना महाराणो ! दुर्वासा ऋषि सदा अल्पाहारी हो अथवा सवाकाल उपवास धारण करनेवाला हो तो हमें मार्ग देना । उन रानियोंने ऐसा ही किया। यमुनाके किनारे खड़े होकर ऐसा हो कहा जिससे यमुना घुटनों तक हो गई और वे सब रानियाँ पार उत्तर ! गई। उन्होंने जाकर यह सब वृत्तांत श्रीकृष्णसे कहा। सो देखो जिस प्रकार सोलह हजार गोपांगनाओंने अनेक प्रकारके भोगविलास क्रीड़ा करता हुआ विषयोंको पुष्ट करता हुआ था परस्त्री सेवन करता हुआ भा बालब्रह्म चारी कहलाया तथा सोलह हजार भरे हुये थालोंको एक ही बारमें भोजन करता हुआ हो सदा अल्पाहारो वा । उपवासी कहलाया। उसी प्रकार सैकड़ों जैनशास्त्रोंमें कहे हुये वचनोंको तथा केवलज्ञानी गणधर आचार्य सामान्य [२७ मुनियोंके कहे हये वचनोंको वा उनके आधारपर बड़े-बड़े आचार्योंके द्वारा कहे हये वचनोंको तो झूठा कह। कहकर उनका निषेध करते जाते हो और केवल अपने वचनोंको हटको स्थापन कर सम्यग्दृष्टो वा यथार्थ श्रद्धानी बनना चाहते हो सो भाई आप लोगोंका यह श्रद्धान ऊपर कहे हये उदाहरणके समान दिखाई पड़ता है।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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