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________________ वर्षासागर २९८ ] SUR तब दूध पीते हो, पौष्पिकर सेवन करते हो ऐसे बाकी बड़े रागले जहाँ-तहाँसे लाकर इकट्ठा करते हो, न महँगी देखते हो न और कुछ देखते हो । तथा उन विषय-भोगोंको मन्द भावोंसे भी सेवन नहीं करते। बाजीकरणके उपाय करते हैं परन्तु जब पूजा, भक्ति, अभिषेक आविका कार्य आ पड़ता है तो उसमें मायाचारीसे काम लेते हैं । जो सर्वथा अयोग्य है । कदाचित यह कहो कि ये तो गृहस्थ सम्बन्धी संसारी कार्य है इनको इस प्रकार किये बिना बनता नहीं । गृहस्थी आरम्भमय हे निमित्त मिलनेपर सब कार्य करने ही पड़ते हैं । परन्तु पूजा, अभिषेक आदि कार्य धर्मरूप हैं इनमें सावद्ययोग वा आरम्भजनित हिंसा नहीं करनी चाहिये। धर्म कार्य और गृहस्थीके कार्य एक नहीं हो सकते । सो भी कहना ठीक नहीं है। क्योंकि क्या संसार सम्बन्धी कार्योंमें पापका फल नहीं लगता है। आप लोग सांसारिक कार्य सब इच्छापूर्वक करते हो उनके करनेमें पापसे नहीं डरते परन्तु पूजा, अभिषेक आदि धर्म कार्योंमें अपने आत्माको बहुत चतुर बनाते हो । आत्मज्ञानी, आत्मण्यानी अथवा अध्यात्मी बनकर पूजा, अभिषेक आदि कार्योंमें अरुचि दिखलाते हो । धर्म कार्योंको बिना द्रव्यके जिस तिस तरह सिद्ध कर लेते हो । देव, धर्म, गुरु और जिनागम के भक्त बनकर उनमें छिद्र ढूंढते हो, दोष लगाते हो और इस प्रकार उनको सदोष बनाकर आप निर्दोष शुद्ध सम्यक्त्वी शुद्ध श्रद्धानी बनते हो । भावार्थ -- स्वयं भक्त होकर भी स्वामीको ( देव, शास्त्र, गुरुको ) सदोष मानकर स्वामित्रहिताका महा दोष लाव कर तथा अपनी स्तुति और परकी निन्दा आदिके सब दोषोंको धारण करते हुए भी शुद्ध श्रद्धानी बनते हो सो आप लोगों के ये कार्य सब दंभमय हैं । देखो एक पाप तो घोके घड़ेपर लगी हुई धूलिके समान होता है। संसार सम्बन्धी विषय भोगोंकी तृष्णारूप वा कषायसे होने वाले अथवा मिथ्यात्व अव्रत योग कषाय प्रभावरूप कार्य सब ऐसे ही पाप हैं इन पापोंका मिटना अत्यन्त कठिन है तथा दूसरे पाप कुम्भारके अवासे ( भट्टीसे ) निकले हुए घड़ेपर लगी हुई धूलिके समान है जो फूक मारते ही उड़ जाती है । उसी प्रकार भगवानका अभिषेक, पूजा, प्रतिष्ठा, नवीन मन्दिरका बनाना, प्रतिमाजीको प्रतिष्ठा कराना, तीर्थयात्रा, नित्यनैमित्तिक पर्व और व्रतोंके विधान वा उद्या पन करनेमें कुछ थोड़ासा पापरूप आरम्भ होता है परन्तु उसका नाश होना अत्यन्त सुसुजसाध्य है। पूजाबिक [ २९८
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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