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________________ । काम बाट लिया। उनमेंसे एक तो ज्योतिषी था सो वह तो बैल चरानेके लिये वनमें गया। व्याकरणका पढ़नेवाला वैयाकरणी, रसोई बनाने के लिये चौके में बैठा। न्यायशास्त्रको पढ़नेवाला नैयायिक पैसे कटोरी लेकर पर्धासागर धो लेने गांव गया और चौथा वैद्यक शास्त्रको पड़नेवाला वैद्य शाक भाजो लेने गया। इन सबके इस प्रकार काम बाँटनेका अभिप्राय यह था कि ज्योतिषी अच्छा महर्त देखकर बेलको चरने छोड़ेगा जिससे कि वह खोया । न जाय । वैयाकरण रसोई अच्छी बनावेगा इसलिये उसे चौके में बिठाया। नैयायिकको घी लेने इसलिये भेजा कि वह अपनी न्याय विद्याके कारण तौल मोलमें ठगा नहीं जायेगा तथा देख भालकर उत्तम घो लावेगा । तथा वैद्यजी महाराज निरोम शाक लावेंगे इसलिये उनको शाक लेने भेजा था। अब चारोंको पंडिताईका हाल सुनिये। उस ज्योतिषीने मी चौपदी कापी लस्त बेलकर और उसीको निर्दोष मानकर उस निर्जन वनमें चरनेके लिये अपने बैल हाँक दिया और स्वयं एक शीतल वृक्षकी छायामें सो रहा । उस ज्योतिषीने वह लग्न ऐसो स्थापना की थी जिसमें चोरो गये पदार्थ फिर न मिल सकें। ऐसे समयमें बैलको छोड़कर सो रहा था। सो वनके भोलादिक उस बैलको ले गये और आप सोता ही रहा । इधर वैयाकरणने दाल, चावल धोकर बटलोई में रखकर चूल्हेपर चढ़ा दी। जब वह खिचड़ी पकने लगी तो बार-बार खदबद शब्द करने लगी। उसे खरबद शब्दको सुनकर वह वयाकरण सोचने लगा कि व्याकरणमें खद शब्द तो। सिद्ध हो जाता है परन्तु वह वद शब्द सिद्ध नहीं होता। यह शब्द अशुद्ध है। और अशुद्ध शब्दके ऊपर धूल । डाल देनी चाहिये । अर्थात् झूठेके मुखमें धूल डाल देनी चाहिये तथा जो शब्द व्याकरणके विरुद्ध है वह मूठा । हो है। ऐसा समझकर उसने एक मुट्ठो चूल्हेकी राख भर कर उस खिचड़ीमें डाल दी जिससे वह सब खिचड़ी बिगड़ गई । नैयायिकजी गांवमें गये और कटोरीमें धो लिये आ रहे थे। मार्गमें उनका न्यायशास्त्रका तक । उठा कि “यह घी पात्रके आधार है या यह पात्र घोके आधार है अर्थात् घीमें फटोरी है या कटोरीमें घो है। "घृताधारं पात्रं वा पात्राधारं घृत" इस बातको न्यायसे सिद्ध करने के लिये उसने वह घो भरी कटोरी ऑधी । कर दो-उलट दी जिससे सब घी पृथ्वीपर गिर कर धूलमें मिल गया। तदनन्तर उसने उस घोसे मिली हुई है। घलको कटोरीमें रखकर कहने लगा कि हाँ ठीक है 'पात्राधारं घृतं नतु घृताधारं पात्रम्' अर्थात् पात्रके आधार। । धो हे घोके आधार पात्र नहीं है कटोरोमें घो है घीमें कटोरी नहीं है। इस प्रकार निश्चय करते हुए उसने T RAPARMARCrenesamala
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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